प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Thursday, February 26, 2009

दिल बेचारा पगला विरही ठहरा

आंखों ने दुनिया देखी थी -
वो तो कब की थम कर बैठ गयी।
दिल बेचारा पगला विरही ठहरा
अब भी तुझको ढूँढा करता हैं।

चेहरे पर मुस्कान लपेटे,
चेहरा तो एक छलवा हैं।
हँसी ठिठोली बातें झूठी,
घट ये खुशियों से रीता हैं।

दुनियादारी की रीत अनूठी
सबसे हंसकर मिलना पड़ता हैं।
लाख ज़ख्म लगे हो दामन पर,
खुद ही कतरा कतरा सीना पड़ता हैं।

आंखों ने दुनिया देखी थी -
आधी-पढ़ ख्वाबों की किताब छोड़ दी
दिल बेचारा पगला विरही ठहरा
अब भी पिछले सफे को पढता हैं।

3 comments:

  1. आंखों ने दुनिया देखी थी -
    आधी-पढ़ ख्वाबों की किताब छोड़ दी
    दिल बेचारा पगला विरही ठहरा
    अब भी पिछले सफे को पढता हैं।

    अब भी पिछले सफे को पढता हैं। ..यह पंक्ति बहुत कुछ कह गयी अच्छी लगी आपकी यह रचना

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  2. दुनियादारी की रीत अनूठी
    सबसे हंसकर मिलना पड़ता हैं।
    लाख ज़ख्म लगे हो दामन पर,
    खुद ही कतरा कतरा सीना पड़ता हैं।
    बहुत बढिया सर अनुपम रचना

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