तेरी आंखों के दरिया में,
जो दो आंसू पग डाले बैठे थे,
मैं अब तक उनको न पढ़ पाया हूँ।
जो दो आंसू पग डाले बैठे थे,
मैं अब तक उनको न पढ़ पाया हूँ।
मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
जीवन की बिखरे पथ पर,
पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
श्यामल सी तेरी रातों में,
ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...
नयन-नीर के वो दो कण देकर,
तुमने क्या उत्तर दे डाला?
वर्षों बीत गए पर अब भी,
इस संशय में बैठा हूँ-
खुशियों की थी वो नयन वृष्टि
या प्रश्न-वेदना की ज्वाला।
तुमने क्या उत्तर दे डाला?
वर्षों बीत गए पर अब भी,
इस संशय में बैठा हूँ-
खुशियों की थी वो नयन वृष्टि
या प्रश्न-वेदना की ज्वाला।
हाय ! नयनों ने क्यों न पढ़ पाई ,
तेरे नयनो की वो भाषा।
उत्तर में तुम एक प्रश्न दे गए,
और उत्तर की एक अभिलाषा।
तेरे नयनो की वो भाषा।
उत्तर में तुम एक प्रश्न दे गए,
और उत्तर की एक अभिलाषा।
मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
ReplyDeleteजीवन की बिखरे पथ पर,
पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
श्यामल सी तेरी रातों में,
ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...
bahut sunder andaaj
हाय ! नयनों ने क्यों न पढ़ पाई ,
ReplyDeleteतेरे नयनो की वो भाषा।
उत्तर में तुम एक प्रश्न दे गए,
और उत्तर की एक अभिलाषा
लाज़बाब कविता उत्तम भावः बेहतरीन अभिव्यक्ति
मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
http://manoria.blogspot.com
behad marmikgehre bhav sundar
ReplyDeleteउत्तर में तुम एक प्रश्न दे गए,
ReplyDeleteऔर उत्तर की एक अभिलाषा।
-क्या बात है, बहुत बढ़िया.
मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
ReplyDeleteजीवन की बिखरे पथ पर,
पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
श्यामल सी तेरी रातों में,
ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।
मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
ReplyDeleteजीवन की बिखरे पथ पर,
पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
श्यामल सी तेरी रातों में,
ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...
.... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति।
सुंदर भाव ....प्रभावशाली रचना .....
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