प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, February 17, 2009

बिसरी यादों का पुलिंदा


दिल जला, हो गए ख्याब धुआं,
साथ मैं भी बुझ गया होता,
कुछ तो था, एक आस ने,
जो मुझको सुलगते रखा

बिसरी यादों का पुलिंदा,
जो लपेट कर तुम रख आए थे,
एक भीगी रात की चादर में,
अब भी पड़ा हैं -
मेरी आंखों के दरीचों में,

आकर ले जाओ इसे,
तो मैं सुकून से गुज़र जाऊंगा


2 comments:

  1. बस जरुरी शब्दों में जो कहना था कह गए आप , बहुत सुदरता से |

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