दिल जला, हो गए ख्याब धुआं,
साथ मैं भी बुझ गया होता,
कुछ तो था, एक आस ने,
जो मुझको सुलगते रखा
साथ मैं भी बुझ गया होता,
कुछ तो था, एक आस ने,
जो मुझको सुलगते रखा
बिसरी यादों का पुलिंदा,
जो लपेट कर तुम रख आए थे,
एक भीगी रात की चादर में,
अब भी पड़ा हैं -
मेरी आंखों के दरीचों में,
आकर ले जाओ इसे,
तो मैं सुकून से गुज़र जाऊंगा
बस जरुरी शब्दों में जो कहना था कह गए आप , बहुत सुदरता से |
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना है.
ReplyDelete