कल भूख से मर गए कुछ गरीब बच्चे मेरे शहर में
यह हृदय-विदारक खबर जब किसी चैनल पर न आई
इक नए युवा पत्रकार के दिल की धड़कन घबराई
होकर परेशान उसने यह बात अपने संपादक से उठाई
संपादक ने कहा - बड़े नौसिखिया हो यार !
किसने बना दिया हैं तुमको आज का पत्रकार?
जो मरे वो तो बच्चे थे, बस भूखे लाचार
इसमें इन्वोल्व न कोई नेता, भाई या तडीपार
खबर मैं छाप दूं अभी पर इससे चैनल क्या पायेगा
यह मुद्दा मुश्किल से दस सेकंड भी न चल पायेगा
कुछ दिन पड़े रहने दो लाशें, मुनिसिपल इश्यु हो जायेगा
तब यही खबर अपना चैनल एक्सक्लूसिव ले आएगा
चिंता न करो, तुम्हारा रिसर्च बेकार नहीं जायेगा
जब खबर लायेंगे तो ये ग्राउंडवर्क काम आयेगा
भूलना मत, दो चार फोटो आज की भी लेते आना
मुश्किल होता हैं वरना एक्सक्लूसिव खबर का बैकग्राउंड बनाना
पहले बेचारा पत्रकार चकराया
और फिर अपनी चिंता जतायी,
मान्यवर अगर नगरपालिका वालों ने
उन बच्चों की लाशें आज ही हटाई
संपादक खिलखिलाया और फिर हल्के से फुसफुसाया
नौसिखिये हो इसलिए तुमने यह मुद्दा उठाया
चुपचाप गायब होती लाशों का मसला और बिक जायेगा
साजिश का एंगल तो चैनल की टीआरपी बढाएगा