प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Thursday, February 26, 2009

दिल बेचारा पगला विरही ठहरा

आंखों ने दुनिया देखी थी -
वो तो कब की थम कर बैठ गयी।
दिल बेचारा पगला विरही ठहरा
अब भी तुझको ढूँढा करता हैं।

चेहरे पर मुस्कान लपेटे,
चेहरा तो एक छलवा हैं।
हँसी ठिठोली बातें झूठी,
घट ये खुशियों से रीता हैं।

दुनियादारी की रीत अनूठी
सबसे हंसकर मिलना पड़ता हैं।
लाख ज़ख्म लगे हो दामन पर,
खुद ही कतरा कतरा सीना पड़ता हैं।

आंखों ने दुनिया देखी थी -
आधी-पढ़ ख्वाबों की किताब छोड़ दी
दिल बेचारा पगला विरही ठहरा
अब भी पिछले सफे को पढता हैं।

Tuesday, February 24, 2009

एक भीड़ दुनियादारी की

एक भीड़ दुनियादारी की, मैं भी चल रहा हूँ,
एक वजूद था मेरा, धीरे-धीरे वो भी कुचल रहा हूँ।
मेहँदी तो नहीं मैं कि कुचल कर ही रंगत पाऊं
हिस्सा हूँ तेरा ए-ज़माने बिछड़ कर किधर जाऊँ

कतरा-कतरा बट गया, कोई भी न रहा चेहरा मेरा
हर पग में एक बवंडर हैं, मिलता ही नहीं बसेरा मेरा
ख़ुद को पाने की चाहत में सब कुछ खोता जाता हूँ,
खेल अजब हैं दुनिया का, ख़ुद को हारा ही मैं पता हूँ।

जब हर घट इस माटी का, तो मैं क्यों रीता जाता हूँ।
जब मन में एक मरघट हैं, तो मैं क्यों जीता जाता हूँ।
यह कैसा दौर हैं मेरे दोस्त!, मैं ख़ुद ही ख़ुद को छल रहा हूँ।
एक भीड़ दुनियादारी की, मैं भी चल रहा हूँ।

Saturday, February 21, 2009

नयनो की भाषा

तेरी आंखों के दरिया में,
जो दो आंसू पग डाले बैठे थे,
मैं अब तक उनको न पढ़ पाया हूँ।

मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
जीवन की बिखरे पथ पर,
पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
श्यामल सी तेरी रातों में,
ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...

नयन-नीर के वो दो कण देकर,
तुमने क्या उत्तर दे डाला?
वर्षों बीत गए पर अब भी,
इस संशय में बैठा हूँ-
खुशियों की थी वो नयन वृष्टि
या प्रश्न-वेदना की ज्वाला।
हाय ! नयनों ने क्यों न पढ़ पाई ,
तेरे नयनो की वो भाषा।
उत्तर में तुम एक प्रश्न दे गए,
और उत्तर की एक अभिलाषा।

Tuesday, February 17, 2009

बिसरी यादों का पुलिंदा


दिल जला, हो गए ख्याब धुआं,
साथ मैं भी बुझ गया होता,
कुछ तो था, एक आस ने,
जो मुझको सुलगते रखा

बिसरी यादों का पुलिंदा,
जो लपेट कर तुम रख आए थे,
एक भीगी रात की चादर में,
अब भी पड़ा हैं -
मेरी आंखों के दरीचों में,

आकर ले जाओ इसे,
तो मैं सुकून से गुज़र जाऊंगा


Sunday, February 15, 2009

तेरे बहाने

जीवन का हलाहल,
सांसो से गुजरता हैं
जब दिन ढल जाता हैं,
आंखों में समंदर सा उतरता हैं।

दो घाव लगे दिल पर,
कुछ शेरों से छिपाया हैं.
ये हाल हैं मेरे दिल का अब,
मुझे मेरे गीतों ने रुलाया हैं।

कोई शिकवा या शिकायत नहीं,
तुझसे, न इस ज़माने से ।
रहे और भी दर्द इस दिल में,
जो निकले तेरे बहाने से।

Thursday, February 12, 2009

तुमने मुझे प्रेम की नयी परिभाषा सिखाई

मित्रो,
इस कविता की रचना मैंने सन् २००० के अन्तिम मॉस में अपनी अर्धांगिनी के लिए की थी। और यह कविता आज भी मेरे दिल के करीब हैं।

तुमने मुझे प्रेम की नयी परिभाषा सिखाई।
प्रेम, सिर्फ़ रुदन ही नहीं उल्लास भी हैं ।
प्रेम खोने का डर नही, पाने की प्यास भी हैं।
तुमने मुझे प्रेम की नयी परिभाषा सिखाई ।

मैं तो जी रहा था, शुष्क जीवन मरुथल में।
मृग मारिचिकाओं के मोह से आहात पल-पल में।
तुम सावन की पहली बदरी बन जीवन पर छाई।
तुमने मुझे प्रेम की नयी परिभाषा सिखाई .

जीवन भोर पर, निशा निवास था चिर स्थाई ।
हर्ष ज्योत्सना खंड-खंड, तिमिर सघन प्रचंड ।
तुन, उषा की प्रथम रश्मि बन जीवन में आई।
तुमने मुझे प्रेम की नयी परिभाषा सिखाई ।

भय के धूमल अंधड़ में, छूट रही थी सांसो की माला।
सूना सूना ही था, जीवन में खुशियों का प्याला।
तुम, सोम-सुधा की मृदुल फुहारबन जीवन पर छाई।
तुमने मुझे प्रेम की नयी परिभाषा सिखाई .

तुमने मुझे प्रेम की नयी परिभाषा सिखाई।
प्रेम, सिर्फ़ रुदन ही नहीं उल्लास भी हैं ।
प्रेम खोने का डर नही, पाने की प्यास भी हैं।
तुमने मुझे प्रेम की नयी परिभाषा सिखाई ।

Tuesday, February 10, 2009

हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।

हाँ!मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ,
कभी-कभी अपनी तन्हाईयों से बात करता हूँ
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।

एक रब्त जो छोड़ आया था,
उस शाम तेरे सिरहाने पर,
उसकी सिरहन अब भी ,
महसूस वर्षों बाद करता हूँ,
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।

वो किस्सा, जिसमे थे नाम तेरे मेरे,
न पहुँचा किसी अंजाम तक,
उसे भूलने की कोशिश मैं अब भी,
सुबहो-शाम करता हूँ,
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।

ज़रूरी तो नहीं हर फ़साना सरेआम हो,
तेरा नाम मेरे नाम के साथ बदनाम हो,
इसलिए तेरे कूचे को अब भी,
दूर से सलाम करता हूँ।
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।

हाँ!मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ,
कभी-कभी अपनी तन्हाईयों से बात करता हूँ
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।
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