कितने भीगे मौसम की चुप्पी लपेटे,
वो बेकरार सवाल अब भी रूठा बैठा हैं
क्या इश्क तुझे भी था मुझसे या
वो मेरी आँखों का ही एक धोखा था
जिस पल मैंने तुझको थामा था
तुने क्या कहने से खुदको रोका था
उदू का डर था या रुसवाई का या -
एक इशारा था आने वाली तनहाई का
मेरे सीने पर सर रखकर छूटी
तेरी आधी अधूरी सी सिसकी
क्या बतलाती थी मुझको उस पल,
तू अब न मुझसे मिलने आएगी
चंद शबों में तू भी गैरों सी हो जायेगी
तू तो चली गयी कह कर
वो उलझे उलझे हर्फ़ अनकहे
पर उस रात को मैं अब भी
हर पल जीया करता हूँ,
ख़ुद से ही पूंछा करता हूँ
क्या थे वो तेरे हर्फ़ अनकहे