प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Monday, March 30, 2009

क्या थे वो तेरे हर्फ़ अनकहे


कितने भीगे मौसम की चुप्पी लपेटे,
वो बेकरार सवाल अब भी रूठा बैठा हैं
क्या इश्क तुझे भी था मुझसे या
वो मेरी आँखों का ही एक धोखा था

जिस पल मैंने तुझको थामा था
तुने क्या कहने से खुदको रोका था
उदू का डर था या रुसवाई का या -
एक इशारा था आने वाली तनहाई का

मेरे सीने पर सर रखकर छूटी
तेरी आधी अधूरी सी सिसकी
क्या बतलाती थी मुझको उस पल,
तू अब न मुझसे मिलने आएगी
चंद शबों में तू भी गैरों सी हो जायेगी

तू तो चली गयी कह कर
वो उलझे उलझे हर्फ़ अनकहे
पर उस रात को मैं अब भी
हर पल जीया करता हूँ,
ख़ुद से ही पूंछा करता हूँ
क्या थे वो तेरे हर्फ़ अनकहे

Sunday, March 22, 2009

मैं शिव क्यों नहीं हो पाता?


रोज रोज-
काल-मंथन से उपजा
सांसो का हलाहल
मैं पीता जाता
फ़िर यह संशय
मुझको खाता
मैं शिव
क्यों नही हो पाता?


अपने अंतर में
खंडित यह बोध लिए
पाप-पुण्य से रंजित
एक सोच लिए
अपनी दुविधा से
जन्मे दर्शन में
करता मीमांसा,
जहाँ जन्मा प्रश्न,
उसी गर्भ से -
उत्तर की आकांक्षा।


अपने तर्क-वितर्क उलझते
एक दुसरे के विरुद्ध
नित्य ही करते
जिज्ञासा मार्ग अवरुद्ध ।
पर इन सबसे इतर,
एक चिंतन नश्वर,
उकेरता मन में,
उत्तर के अक्षर ।



संभवतः मैं
जीवन की विषमताओ पर,
तांडव न कर पाता हूँ,
काम के मोहक आघातों पर,
क्रोधित न हो पाता हूँ।
इच्छाओ की मृग-तृष्णा में,
स्वं स्थिर न रह पाता हूँ
हलाहल पीकर भी -
जीवन को ललचाता हूँ।
संभवतः इस कारण मैं
शिव न हो पाता हूँ।


Monday, March 16, 2009

कभी तू भी मुझे मेरे नाम से बुला।

इश्क का फरमान हैं -
आँखों से जता, होठो से बता,
कभी तू भी मुझे मेरे नाम से बुला।


क्या देखता हैं तू, ज़माने की तपिश,
इश्क का हैं यह खेल मेरे यार! गर हैं-
तो फ़िर तू भी जल मुझको भी जला
कभी तू भी मुझे मेरे नाम से बुला।


इश्क को चुपचाप सिसकियाँ भरकर,
दबे पाँव गुजर जाने की हैं आदत।
आह-ऐ-दिल सुन औ' मुझको भी सुना
कभी तू भी मुझे मेरे नाम से बुला।


कितने रांझे भटक गए हीरों की तलाश में,
कितनी शमायें बुझ गयीं पतंगे की आस में,
न ठहर, कदम दो कदम ही, मेरी ओर तो बढ़ा
कभी तू भी मुझे मेरे नाम से बुला।


बेनाम किरदारों की कहानी भुला देते हैं ज़माने वाले ,
तेरे गम पर हँसते हैं, तेरे साथ आंसू बहाने वाले,
नाम ने दे इस रिश्ते को पर एक अफसाना तो बना,
कभी तू भी मुझे मेरे नाम से बुला।


Thursday, March 5, 2009

...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था


सूरज बुझाकर जब शाम के आँचल से,
उस सांवली रात का चेहरा निहारा था,
वही सूना पथ था, खुला ह्रदय पट था
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था


हवाओं ने हलके से केश बादलों का उडाया था,
चाँद भी चन्दनी का हाथ थामे छत पर आया था
इनकी आँखों में छलकता प्यार हमारा था,
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था


मिलन की प्यास ले दरिया खिसक कुछ पास आया था,
वहीं माझी ने किसी कश्ती से एक गीत उठाया था,
बोल सारे नए थे पर भाव वही पुराना था,
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था


कई महफिलों में पढ़कर आया था ग़ज़ल तेरे नाम की ,
दबी-ज़ुबाँ लोगों ने बज्म में तेरा नाम भी फुसफुसाया था,
यूँ तो बात तेरी थी पर तखल्‍लुस हमारा था
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था

Tuesday, March 3, 2009

भगवानो के भी वो दाम नहीं मिलते



जिंदगी की फटेहाल जेब को ,
टटोल कर देखा, तो पाया कि
उसूलो की कुछ चिल्लर पड़ी हैं।
कितनी गिरी और कितनी बची
इसका कोई अंदाज नहीं -
वैसे भी, इस महंगाई के दौर में
किसी काम की आज नहीं।


कबके बदल गए वो सिक्के ,
जो घर खुशियाँ लाया करते थे,
अब तो सरे-बाज़ार बेचकर ईमान,
खुलूस के पैबंद भी नहीं मिलते।


हर हाट में खुली हैं दुकान,
क्या-क्या समान नहीं मिलते
इंसानों की क्या कहें, ऐ दोस्त!
भगवानो के भी वो दाम नहीं मिलते

Blog Widget by LinkWithin