बढ़ जाना तुम हँसकर, सिसकता उसे छोड़कर
न सुनना उसकी कोई दिलकश कहानी
न बहाना आँखों से दो बूँद पानी ...
कसकर थामना तुम अपने दामन को
बिफर कर न पकड़ ले वो पागल-
तुम्हारे अरमानों के आँचल को
न ठहरना पलभर, न देखना दम भर
नज़रें झुकाकर चुपचाप निकल जाना
पूछें जो कोई तो तुम कर लेना बहाना
बचकर कर चलना, उस मोड़ पर -
कहीं थाम न ले कदम तुम्हारे,
कोई सिसकी, वहाँ दम तोड़कर
संभलना, यहाँ राख में आग भी है!
रिश्तों में अभी बाकी साँस भी है!
कोई बेपर्दा आह तुम्हारी,
हवा का काम न कर दे
बीते किस्से कहीं आम न कर दे
रोकना सिसकियाँ उस मोड़ पर,
बढ़ जाना हँसकर, सिसकता उसे छोड़कर.....