प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, January 26, 2010

बीता हुआ कल...




बीता हुआ कल, मिल जाये कहीं, किसी मोड़ पर
बढ़ जाना तुम हँसकर, सिसकता उसे छोड़कर


न सुनना उसकी कोई दिलकश कहानी
न बहाना आँखों से दो बूँद पानी ...
कसकर थामना तुम अपने दामन को
बिफर कर न पकड़ ले वो पागल-
तुम्हारे अरमानों के  आँचल को 


न ठहरना पलभर, न देखना दम भर
नज़रें झुकाकर चुपचाप निकल जाना
पूछें जो कोई तो तुम कर लेना बहाना 
बचकर  कर चलना, उस मोड़ पर - 
कहीं थाम न ले कदम तुम्हारे,
कोई सिसकी, वहाँ दम तोड़कर


संभलना, यहाँ राख में आग भी है!
रिश्तों में अभी बाकी साँस भी है!
कोई बेपर्दा आह तुम्हारी,
हवा का काम न कर दे
बीते किस्से कहीं आम न कर दे


रोकना सिसकियाँ उस मोड़ पर,
बढ़ जाना हँसकर, सिसकता उसे छोड़कर.....

Tuesday, January 19, 2010

यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है

मित्रों,
शांतनु ने  जब प्रातः काल भ्रमण में रूपसी  गंगा का ऐश्वर्य प्रथम बार देखा होगा तो उनके मन में क्या विचार उत्पन्न हुए होंगे...इसी कल्पना को लेकर कुछ पंक्तिया लिखी हैं. आशा है कि आपका प्रेम मिलेगा...



यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है,
उस पर देखो कैसा कुसुम मृदुल सवेरा है

यौवन सुरभि मद-मस्त पवन को छलती है
अरुण-कपोलों की लाली गगन में घुलती है
अधर-कम्पन पर भ्रमित भ्रमर-दल गुनगुनाते हैं
देख अलक की रंगत श्यामल मेघ-घन लजाते हैं
प्रातः का है स्वप्न या साकार मैंने तुझको देखा है
यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है,

कनक किरण की कांति लिए यह कंचन-काया है,
मदन-मोहती मादक क्या मृगतृष्णामयी  माया है
होकर परास्त पद-गिरे पराक्रम  ऐसी पद्मा-छाया है
सहस्र नृप करें सामर्थ्य समर्पण ऐसी सुदर्शन-आभा है
बहक रहा मैं मधु-पीकर या प्रीत-पाश तुमने फेंका है
यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है

मोक्ष-कामना भ्रमित हुई और तप कितने खंडित
आत्म-ग्लानि में प्रज्वलित कितने तापस पण्डित
विस्मृत विद्या-विज्ञान सभी, छवि तेरी ही अंकित
दो कण यौवन मदिरा के पी क्यों  न मैं हूँ दण्डित
निष्फल निष्काम मृत्यु या तुझ संग जीने का फेरा है
यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है

यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है,
उस पर देखो कैसा कुसुम मृदुल सवेरा है

Tuesday, January 12, 2010

बचना वो हँसकर मिलता है दोनों बाहें फैलाएं




बचना वो हँसकर मिलता है दोनों बाहें फैलाएं
मुश्किल में होगा न जाने कौन सा काम बताए

चुनावी मौसम था, वादों की बयार में गुजर गया
आओ अब खुद सुलझाएं अपनी अपनी समस्याएँ 

रही बाट जोहती शिक्षक की किनती सारी कक्षाएँ
ट्युशन से पार लगेंगी इस साल की भी परीक्षाएं

सच ही होगी खबर दंगों की आज के अखबार में
सरकार ने कहा सब विपक्ष ने हैं फैलाई अफवाहें

दाल-रोटी महंगी हुई पर जीने की और विवशताएँ
घी-लकड़ी के दाम हैं दुने बड़ी महंगी पड़ेगी चिताएँ

न कर उम्मीद दास्ताँ किसी भी पीर औ' मुर्शिद की
बदलनी किस्मत हैं तुझको तो खुद गढ़ अपनी राहें

Tuesday, January 5, 2010

कतरा कतरा मैं बह जाऊंगा



मकाँ इक पुराना हूँ मैं, तेरी गर्म सांसों से ढह जाऊंगा
न रो मेरे काँधों से लगकर, कतरा कतरा मैं बह जाऊंगा

आशिक़ बनकर जिया हूँ मैं, आशिक़ बनकर मर जाऊँगा,
छिपाया ताउम्र नाम जो आखिरी हिचकीं में कह जाऊंगा

रात-रात जागा हूँ मैं, चुभते हुए ख्याबों की मानिंद
सुबह एक प्यास  की तरह,  तेरी आँखों में रह जाऊंगा

आता ही नहीं हूँ मैं, तेरी दर पर दिल लगाने के डर से,
तेरे आंसूओं का इल्म मुझे, अपना दर्द तो सह जाऊंगा

इक फकीरी ख्याल हूँ मैं  'दास्ताँ' अजनबी नहीं कोई,
तेरे शहर में किसी भी  गुमनाम गली में लह जाऊँगा
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