प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Wednesday, August 4, 2010

तुम्हारा नाम


बड़े छोटे से लगे दर्द अपने
जब चंद पन्नो पर
सिमट आये
कविता बनकर....

तेरी लटों में उलझे
वो तन्हा से ख्यालात,
तेरे बोसों से महके,
कुछ गुमनाम दिन-रात
कुछ कहे-अनकहे  से
मेरे दर्द और  जज्बात
वो सालों तक सताती रही
तेरी रुखसत की एक बात
वो मेरी उम्रदराज आरजू,
एक कशमकश, इंतजार
सब कुछ !!
बस चंद पन्नों पर
सिमट आया था

फिर एक नज़र में,
अपनी कविता लगने लगी..
ज़िन्दगी से बड़ी
आखिर कुछ अल्फाजों में सही 
किसी शख्स की थी उम्र पड़ी
कुछ आशाएं, कुछ निराशाएं
दिल की बोली कुछ नैन-भाषाएँ
कुछ पाने की चाह,
कुछ खोने की आह

अल्फाजों औ' सफों के दायरों से अलग
भावों औ' ज़ज्बातों से ऊपर
तेरे-मेरी कहानी के बंधन से अलग
इक जुस्तजू, इक धरोहर की
खुशबू की तरह रोशन
साँस लेती, जीती मरती इक कहानी
जो पनप रही थी
उन चंद पन्नों पर....

पर दोनों ही हालातों में ,
शिकवा तो वही था, जानम!
इस बेनाम साझी सी कहानी की
हर लाइनों की तहों में,
जबकि एहसास सिर्फ तुम्हारा  था
लेकिन मेरी हाथ की रेखाओं की तरह
इस नज्म  में भी नदारत,
 नाम तुम्हारा था...

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