बढ़ जाना तुम हँसकर, सिसकता उसे छोड़कर
न सुनना उसकी कोई दिलकश कहानी
न बहाना आँखों से दो बूँद पानी ...
कसकर थामना तुम अपने दामन को
बिफर कर न पकड़ ले वो पागल-
तुम्हारे अरमानों के आँचल को
न ठहरना पलभर, न देखना दम भर
नज़रें झुकाकर चुपचाप निकल जाना
पूछें जो कोई तो तुम कर लेना बहाना
बचकर कर चलना, उस मोड़ पर -
कहीं थाम न ले कदम तुम्हारे,
कोई सिसकी, वहाँ दम तोड़कर
संभलना, यहाँ राख में आग भी है!
रिश्तों में अभी बाकी साँस भी है!
कोई बेपर्दा आह तुम्हारी,
हवा का काम न कर दे
बीते किस्से कहीं आम न कर दे
रोकना सिसकियाँ उस मोड़ पर,
बढ़ जाना हँसकर, सिसकता उसे छोड़कर.....
सच कहा सुधिरजी आपने,
ReplyDeleteज़िन्दगी का नाम ही आगे बड़ते रहना है! अतीत चाहे सुन्दर हो या सिसकता उसके दमन को थाम गुज़ारा नहीं होता.....वक्त के सहारे चलती है ज़िन्दगी! जिंदगी को वक्त का सहारा नहीं होता !!
बहुत प्रेरणादायी कविता की रचना पर बधाई ...!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
बेहतरीन रचना..अच्छा लगा पढ़कर. बधाई.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteबधाई!
संभलना, यहाँ राख में आग भी है!
ReplyDeleteरिश्तों में अभी बाकी साँस भी है!
कोई बेपर्दा आह तुम्हारी,
हवा का काम न कर दे
बीते किस्से कहीं आम न कर दे
रोकना सिसकियाँ उस मोड़ पर,
बढ़ जाना हँसकर, सिसकता उसे छोड़कर....
सुधीर तुम हर रचना मे इतना दर्द कैसे भर देते हो? मुझे लगता है ज़िन्दगी मे रुकना बढना वही सोचते3 हैं जो खुद कदम नहीं बढाते हवा के संग ही बहते हैं वैसे बहुत प्रेरणादाई रचना है । स्कारात्मक सोच । बधाई और बहुत बहुत आशीर्वाद्
सही है बन्धुवर। सब अनुभूतियां हों, पर बंध कर रुक न जायें। चलते रहें।
ReplyDeleteसंभलना, यहाँ राख में आग भी है!
ReplyDeleteरिश्तों में अभी बाकी साँस भी है!बेहतरीन बहुत खूब लिखा है आपने ..अच्छा लगा शुक्रिया
Gadi bula rahi hai, seeti baza rahi hai, Chalna hi jindagi hai, chalti hi ja rahi hai...
ReplyDeleteGadi bula rahi hai, seeti baza rahi hai, Chalna hi jindagi hai, chalti hi ja rahi hai...
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