प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, January 19, 2010

यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है

मित्रों,
शांतनु ने  जब प्रातः काल भ्रमण में रूपसी  गंगा का ऐश्वर्य प्रथम बार देखा होगा तो उनके मन में क्या विचार उत्पन्न हुए होंगे...इसी कल्पना को लेकर कुछ पंक्तिया लिखी हैं. आशा है कि आपका प्रेम मिलेगा...



यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है,
उस पर देखो कैसा कुसुम मृदुल सवेरा है

यौवन सुरभि मद-मस्त पवन को छलती है
अरुण-कपोलों की लाली गगन में घुलती है
अधर-कम्पन पर भ्रमित भ्रमर-दल गुनगुनाते हैं
देख अलक की रंगत श्यामल मेघ-घन लजाते हैं
प्रातः का है स्वप्न या साकार मैंने तुझको देखा है
यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है,

कनक किरण की कांति लिए यह कंचन-काया है,
मदन-मोहती मादक क्या मृगतृष्णामयी  माया है
होकर परास्त पद-गिरे पराक्रम  ऐसी पद्मा-छाया है
सहस्र नृप करें सामर्थ्य समर्पण ऐसी सुदर्शन-आभा है
बहक रहा मैं मधु-पीकर या प्रीत-पाश तुमने फेंका है
यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है

मोक्ष-कामना भ्रमित हुई और तप कितने खंडित
आत्म-ग्लानि में प्रज्वलित कितने तापस पण्डित
विस्मृत विद्या-विज्ञान सभी, छवि तेरी ही अंकित
दो कण यौवन मदिरा के पी क्यों  न मैं हूँ दण्डित
निष्फल निष्काम मृत्यु या तुझ संग जीने का फेरा है
यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है

यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है,
उस पर देखो कैसा कुसुम मृदुल सवेरा है

6 comments:

  1. सुंदर व बेहतरीन शब्दों के साथ ........... बहुत सुंदर रचना...

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  2. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!

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  3. Behad khoobsoortee se shbdonko malame piroya gaya hai!

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  4. Ganga to ganaga hamko to satyawati bhi nazar aayi....Maharaj shantanu bhi....Mahabharat racha gaye :-)

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  5. यह मध्यम-मध्यम चढ़ती जीवन बेला है,
    उस पर देखो कैसा कुसुम मृदुल सवेरा है
    सुधीर क्या सुन्दर कविता है तुम्हारा हिन्दी कोश बहुत समृद्ध है। कई बार तुम्हारी रचना सृजन कला पर हैरान होती हूँ। बहुत बहुत आशीर्वाद और बधाई

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