प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Wednesday, March 31, 2010

गुमनाम सी मौत


कल जो मरा गली के नुक्कड़ पर,
गुमनाम सी मौत,
वो शायर ही होगा शायद....

ताउम्र अहसासों की कुची से
रंग भरता रहा जिंदगी के,
शफाक से कागजों पर...
रंग ही न बचे उसकी -
ज़िन्दगी के मुहाने पर 
कितनी सादगी से मौत ने  भी
 थामा उसका बदरंग सा दामन...
वो शायर ही होगा शायद....

लब्जों की चिलमन से
कई बार झाँका था उसने
दिलकश-हसीं जिंदगी का चेहरा
पर शब्द भी तो इंसान के जाये थे
कब तक साथ निभाते?
एक उफ़ भी न कह सका वो 
थामा जब मौत ने चुपके से उसका दामन ...
वो शायर ही होगा शायद....

सबके दर्द की चुभन,
कुछ आंसू, एक टीस
महसूस करता रहा ज़िन्दगी भर...
गढ़ता रहा नज़्म का चेहरा
भरता रहा बज़्म में दर्द के प्याले
पर एक हमदर्द भी न मुनस्सर हुआ
थामा जब मौत ने उसका तन्हा दामन
वो शायर ही होगा शायद....

कल जो मरा गली के नुक्कड़ पर,
गुमनाम सी मौत,
वो शायर ही होगा
 यकीनन!!

Tuesday, March 23, 2010

आशिक़ की थी आखिरी-आह....



आशिक़ की थी आखिरी-आह, नतीजा ज़माना-ए-बेइंसाफ की
सबको दे गया था वह दुआएं  बस शिकायत अपने खिलाफ की

 हुआ क़त्ल चुपचाप पर  कह न सका बेवफाई यार की
रहा सोचता शब-ए-क़यामत को होगी बात इंसाफ की

खलती नहीं  नाराजगी उनकी जो झूठे शिकवों से इजहार की
मालूम हैं हमको चलती नहीं देर तक ठंडक लिहाफ की

थी खबर  उसको भी मेरी ताउम्र कशमकश औ' इन्तजार की
चुपचाप नज़रें फेरकर उसने, न जाने कितनी  बातें साफ की

क्या मासूम है अदा दास्ताँ उनकी जुल्मत के इकरार की
पूछते हैं हमसे दिल तोड़ने की सजा भी क्या मुआफ की

Tuesday, March 16, 2010

गम है कि जिन्दा हूँ, वरना खुशियों से तो मर जाता



गम है कि जिन्दा हूँ, वरना खुशियों से तो मर जाता
तनहाइयों ने थामे रखा, वरना जमाने में किधर जाता

सौ बार हुआ क़त्ल रहा फिर भी धड़कता मेरा दिल
माजी की थी चाहत नहीं तो इक झोके से बिखर जाता

न छिपा ज़ालिम पर्दों में यूँ, इस गुल-ए-हुस्न को अपने
होती हैं आफ़ताब आशिक़-निगाहें, पड़ती तो निखर जाता  

खुशनसीब हूँ मैं कि उसने  मुझसे इक रिश्ता तो बनाया
ज़फ़ा करके वो कायम है, वफ़ा करता तो मुकर जाता

दिल टूटा है होगा तूफां से तेरा सामना उम्रभर अब तो
ख्याब कोई टूटा होता तो मौसमी गुबार सा गुजर जाता

रहमत उसकी जो हँसकर दिल लगाया भी, मिटाया भी
मेरे दामन को वरना कोई कैसे इन गजलों से भर जाता

हुई हैं कामयाब दास्ताँ कुछ तो रकीबों की बाते वरना
तुझसे मिलकर वो मुस्कुराता सा चेहरा न उतर जाता

Tuesday, March 9, 2010

तेरे तसव्वुर से मैं कह पाता, मैं वो सब जो कहना भूल गया



तुम जाओगे तो क़यामत होगी, रुक जाओगे तो क़यामत होगी
हाय! इसी कशमकश में,  मैं तुझसे हाल-ए-दिल कहना भूल गया
काश थाम कर यादों का आइना, पलट कर कुछ वक्त के पन्ने,
तेरे तसव्वुर से मैं कह पाता, मैं वो सब जो कहना भूल गया

वो रब्त जिसे बाँध न पाए, तेरे मेरे नाम के कच्चे धागे
उसके सिरे थामे अपने कुछ उजडे सपने बांधा करता हूँ
खामोशियों की आड़ में ठंडी साँसों  में लपेटकर अब भी
हर गिरह पर तेरे नाम से गुमनाम रिश्ते बांधा करता हूँ

ज़रूरी तो नहीं ज़िन्दगी में,  हर सवाल का जवाब मिले
मुमकिन हैं कि सवाल के, जवाब में हमे इक सवाल मिले
फिर भी यह सोचकर गुज़रता हूँ मैं, तेरी रहगुजर से
किसी रोज़ तो तू भी मुझको, मुझसी ही हमख्याल मिले

इश्क एक अहसास दफ्न जो, कितने बेजुबां दिलों की तहों में
शब्द हैं दरकार इसको भी,  तभी  होता यह मुकम्मल पलों में
मालूम थी यें हकीकत मुझे फिर क्यों तुझसे कहना भूल गया 
ताउम्र इबादत की जिसकी दास्ताँ, उसके सजदे में रहना भूल गया
काश थाम कर यादों का आइना, पलट कर कुछ वक्त के पन्ने,
तेरे तसव्वुर से मैं कह पाता, मैं वो सब जो कहना भूल गया


विशेष: सभी गत सप्ताह सोमवार को होली के  कारण काव्य रचना से अवकाश रहा. क्षमा प्रार्थी हूँ और साथ ही सभी आदरणीय पाठकों एवं स्नेहीजन को (देर से ही सही)  होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.  
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