कल जो मरा गली के नुक्कड़ पर,
गुमनाम सी मौत,
वो शायर ही होगा शायद....
ताउम्र अहसासों की कुची से
रंग भरता रहा जिंदगी के,
शफाक से कागजों पर...
रंग ही न बचे उसकी -
ज़िन्दगी के मुहाने पर
कितनी सादगी से मौत ने भी
थामा उसका बदरंग सा दामन...
वो शायर ही होगा शायद....
लब्जों की चिलमन से
कई बार झाँका था उसने
दिलकश-हसीं जिंदगी का चेहरा
पर शब्द भी तो इंसान के जाये थे
कब तक साथ निभाते?
एक उफ़ भी न कह सका वो
थामा जब मौत ने चुपके से उसका दामन ...
वो शायर ही होगा शायद....
सबके दर्द की चुभन,
कुछ आंसू, एक टीस
महसूस करता रहा ज़िन्दगी भर...
गढ़ता रहा नज़्म का चेहरा
भरता रहा बज़्म में दर्द के प्याले
पर एक हमदर्द भी न मुनस्सर हुआ
थामा जब मौत ने उसका तन्हा दामन
वो शायर ही होगा शायद....
कल जो मरा गली के नुक्कड़ पर,
गुमनाम सी मौत,
वो शायर ही होगा
यकीनन!!