जागा रात भर, सोया न बिस्तर बेगाना मेरा,
हर करवट सदाएँ देता था सपना पुराना तेरा.
सोचा रात भर, वजहें तेरी बज़्म में आने की,
काश मुझको मालूम न होता ठिकाना तेरा
काश मुझको मालूम न होता ठिकाना तेरा
चर्चा रात भर, चलता रहा महफ़िल में मेरा,
जब बात ही बात में निकला फ़साना तेरा
रोया रात भर, आमावस को चकोर कोई,
दूर से देखा होगा उसने चेहरा सुहाना तेरा
घूमा रात भर, गली-कुंचा बदहवाश बेचारा
पागल सा दिखता था, होगा दीवाना तेरा
भीगा रात भर, अपने खूँ के दरिया में दास्ताँ
रंजिशे थी शहर की हमसे औ' बहाना तेरा
घूमा रात भर, गली-कुंचा बदहवाश बेचारा
ReplyDeleteपागल सा दिखता था, होगा दीवाना तेरा
शायद दीवानगी ही तो इश्क है.
सुन्दर रचना
रात भर जागने, सोने और भीगने के क्या क्या बहाने तलाश लिए हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर कविता ...!!
बढ़िया ..शुक्रिया इसको यहाँ शेयर करने के लिए
ReplyDeletebahut hi sundar rachna.......badhayi
ReplyDeleteBAHUT KHOOB!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर काव्य और बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteचर्चा रात भर, चलता रहा महफ़िल में मेरा,
ReplyDeleteजब बात ही बात में निकला फ़साना तेरा
रोया रात भर, आमावस को चकोर कोई,
दूर से देखा होगा उसने चेहरा सुहाना तेरा
भीगा रात भर, अपने खूँ के दरिया में दास्ताँ
रंजिशे थी शहर की हमसे औ' बहाना तेरा
लाजवाब हैं तीनो शेर । गज़ब की ज़ल है बधाई और आशीर्वाद्
बेहतरीन रचना!
ReplyDelete