प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, December 22, 2009

रात भर....



जागा रात भर, सोया  न बिस्तर बेगाना मेरा,
हर करवट सदाएँ देता था सपना पुराना  तेरा.

सोचा रात भर, वजहें तेरी बज़्म में आने की,
काश मुझको मालूम न होता ठिकाना  तेरा

चर्चा रात भर, चलता रहा महफ़िल में मेरा,
जब बात ही बात में निकला फ़साना तेरा

रोया रात भर, आमावस को चकोर कोई,
दूर से देखा होगा उसने चेहरा सुहाना तेरा

घूमा रात भर, गली-कुंचा बदहवाश बेचारा
पागल सा दिखता था, होगा दीवाना तेरा

भीगा रात भर, अपने खूँ के दरिया में दास्ताँ
रंजिशे थी शहर की हमसे औ' बहाना तेरा

8 comments:

  1. घूमा रात भर, गली-कुंचा बदहवाश बेचारा
    पागल सा दिखता था, होगा दीवाना तेरा
    शायद दीवानगी ही तो इश्क है.
    सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  2. रात भर जागने, सोने और भीगने के क्या क्या बहाने तलाश लिए हैं ...
    सुन्दर कविता ...!!

    ReplyDelete
  3. बढ़िया ..शुक्रिया इसको यहाँ शेयर करने के लिए

    ReplyDelete
  4. bahut hi sundar rachna.......badhayi

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर काव्य और बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

    ReplyDelete
  6. चर्चा रात भर, चलता रहा महफ़िल में मेरा,
    जब बात ही बात में निकला फ़साना तेरा

    रोया रात भर, आमावस को चकोर कोई,
    दूर से देखा होगा उसने चेहरा सुहाना तेरा

    भीगा रात भर, अपने खूँ के दरिया में दास्ताँ
    रंजिशे थी शहर की हमसे औ' बहाना तेरा
    लाजवाब हैं तीनो शेर । गज़ब की ज़ल है बधाई और आशीर्वाद्

    ReplyDelete

Blog Widget by LinkWithin