हाँ!मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ,
कभी-कभी अपनी तन्हाईयों से बात करता हूँ
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।
एक रब्त जो छोड़ आया था,
उस शाम तेरे सिरहाने पर,
उसकी सिरहन अब भी ,
महसूस वर्षों बाद करता हूँ,
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।
वो किस्सा, जिसमे थे नाम तेरे मेरे,
न पहुँचा किसी अंजाम तक,
उसे भूलने की कोशिश मैं अब भी,
सुबहो-शाम करता हूँ,
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।
ज़रूरी तो नहीं हर फ़साना सरेआम हो,
तेरा नाम मेरे नाम के साथ बदनाम हो,
इसलिए तेरे कूचे को अब भी,
दूर से सलाम करता हूँ।
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।
हाँ!मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ,
कभी-कभी अपनी तन्हाईयों से बात करता हूँ
हाँ! मैं अब भी तुम्हे याद करता हूँ।
प्यारे पथिक
जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह
Tuesday, February 10, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment