प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Saturday, February 21, 2009

नयनो की भाषा

तेरी आंखों के दरिया में,
जो दो आंसू पग डाले बैठे थे,
मैं अब तक उनको न पढ़ पाया हूँ।

मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
जीवन की बिखरे पथ पर,
पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
श्यामल सी तेरी रातों में,
ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...

नयन-नीर के वो दो कण देकर,
तुमने क्या उत्तर दे डाला?
वर्षों बीत गए पर अब भी,
इस संशय में बैठा हूँ-
खुशियों की थी वो नयन वृष्टि
या प्रश्न-वेदना की ज्वाला।
हाय ! नयनों ने क्यों न पढ़ पाई ,
तेरे नयनो की वो भाषा।
उत्तर में तुम एक प्रश्न दे गए,
और उत्तर की एक अभिलाषा।

7 comments:

  1. मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
    जीवन की बिखरे पथ पर,
    पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
    श्यामल सी तेरी रातों में,
    ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...
    bahut sunder andaaj

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  2. हाय ! नयनों ने क्यों न पढ़ पाई ,
    तेरे नयनो की वो भाषा।
    उत्तर में तुम एक प्रश्न दे गए,
    और उत्तर की एक अभिलाषा
    लाज़बाब कविता उत्तम भावः बेहतरीन अभिव्यक्ति
    मेरे ब्लॉग पर पधार कर "सुख" की पड़ताल को देखें पढ़ें आपका स्वागत है
    http://manoria.blogspot.com

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  3. उत्तर में तुम एक प्रश्न दे गए,
    और उत्तर की एक अभिलाषा।

    -क्या बात है, बहुत बढ़िया.

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  4. मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
    जीवन की बिखरे पथ पर,
    पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
    श्यामल सी तेरी रातों में,
    ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...
    बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई स्वीकारें।

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  5. मैंने तो बस एक प्रश्न किया था,
    जीवन की बिखरे पथ पर,
    पग-दो-पग मैं भी क्या साथ चलूँ?
    श्यामल सी तेरी रातों में,
    ढिबरी सा चुप-चाप जलूं...

    .... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

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  6. सुंदर भाव ....प्रभावशाली रचना .....

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