मुस्कानों के मुखोटे
अठठासों के लिबास
वस्तुतः रुदन -
हा! कैसा छद्म जीवन ?
विरल सुख, गहन दुःख
फ़िर भी शांत मुख,
नित्य अभिनय नूतन,
हा! कैसा छद्म जीवन ?
दृष्टिगोचर कलरव,
रश्मि का उत्सव,
पर सत्य, निशा-क्रंदन
हा! कैसा छद्म जीवन ?
रिश्तों की भीड़,
सह एकाकी पीर,
मुक्ति या बंधन
हा! कैसा छद्म जीवन ?
दायित्वों के बोझ,
इच्छाओं का रोष,
पर रुग्ण तन -
हा! कैसा छद्म जीवन ?
धर्म की सोच,
कर्म का बोध,
कहाँ मुक्त मन?
हा! कैसा छद्म जीवन ?
गतिमान तन,
आशावान मन,
सत्य मृत्यु या चेतन
हा! कैसा छद्म जीवन ?
After such a long time I read such a nice poem.
ReplyDeleteAwesome...
मुस्कानों के मुखोटे
ReplyDeleteअठठासों के लिबास
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
भावपूर्ण!!
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना है
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