आज सुबह -सुबह अपनी उनीदी आँखों में,
तेरा एक टूटा बिखरा सा ख्याब मिला,
तो बावरे मन ने सोचा - तुम कैसे हो?
मैं तो अपने दिल बात, ये अनसुलझे हालत,
कुछ बहकी बातें, कुछ न सम्हली आहें,
ग़ज़लों में, शेरो में, सच्ची-झूठी कह लेता हूँ...
कुछ सूखे रुखसार, रोने के आसार -
अपना लंबा इंतज़ार, हालातों की मार,
गीले सीले सफों में पुडियाकर बज्मो में रख देता हूँ...
पर प्रिय तुम, तुम तो जाने कहाँ गए?
एक न तामीर हुए रब्त के उस पार
थामे हाथों में यादों का चटका संसार
न जाने किन हवाओं में खो गए ...
न जाने किस रिश्ते के हो गए ....
कुछ भी तो नही अब कहते तुम,
न शिकवे और न कोई शिकायत,
न थमने उन किस्सों की आहट।
मेरे दोस्त कुछ तो बोलो कभी,
मुझसे न सही, ज़माने से ही सही।
कैसे सहते हो वक्त के रंज,
वो तिरछे तिरछे तंज
अपने हालत यूँ न छिपाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
यह मौन बड़ा घातक होता है।
इसे यूँ न आजमाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
यह मौन बड़ा घातक होता है।
ReplyDeleteइसे यूँ न आजमाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
-बहुत सुन्दर!!
सुंदर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteकैसे सहते हो वक्त के रंज,
ReplyDeleteवो तिरछे तिरछे तंज
अपने हालत यूँ न छिपाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
यह मौन बड़ा घातक होता है।
इसे यूँ न आजमाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
" aapki shaily different hai,
atleast meri to pehli pasand hai
कैसे सहते हो वक्त के रंज,
ReplyDeleteवो तिरछे तिरछे तंज
अपने हालत यूँ न छिपाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
यह मौन बड़ा घातक होता है।
इसे यूँ न आजमाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
sunder gehre bhav,badhai
भावों से भरी ...एहसासों से सजी हुई ...वाह
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सघन एहसास -- खूबसूरत भाव
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