प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, July 21, 2009

तुम कैसे हो?


आज सुबह -सुबह अपनी उनीदी आँखों में,
तेरा एक टूटा बिखरा सा ख्याब मिला,
तो बावरे मन ने सोचा - तुम कैसे हो?

मैं तो अपने दिल बात, ये अनसुलझे हालत,
कुछ बहकी बातें, कुछ न सम्हली आहें,
ग़ज़लों में, शेरो में, सच्ची-झूठी कह लेता हूँ...
कुछ सूखे रुखसार, रोने के आसार -
अपना लंबा इंतज़ार, हालातों की मार,
गीले सीले सफों में पुडियाकर बज्मो में रख देता हूँ...

पर प्रिय तुम, तुम तो जाने कहाँ गए?
एक न तामीर हुए रब्त के उस पार
थामे हाथों में यादों का चटका संसार
न जाने किन हवाओं में खो गए ...
न जाने किस रिश्ते के हो गए ....

कुछ भी तो नही अब कहते तुम,
न शिकवे और न कोई शिकायत,
न थमने उन किस्सों की आहट।
मेरे दोस्त कुछ तो बोलो कभी,
मुझसे न सही, ज़माने से ही सही।

कैसे सहते हो वक्त के रंज,
वो तिरछे तिरछे तंज
अपने हालत यूँ न छिपाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
यह मौन बड़ा घातक होता है।
इसे यूँ न आजमाओ,
तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।

6 comments:

  1. यह मौन बड़ा घातक होता है।
    इसे यूँ न आजमाओ,
    तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।

    -बहुत सुन्दर!!

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  2. कैसे सहते हो वक्त के रंज,
    वो तिरछे तिरछे तंज
    अपने हालत यूँ न छिपाओ,
    तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
    यह मौन बड़ा घातक होता है।
    इसे यूँ न आजमाओ,
    तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।

    " aapki shaily different hai,
    atleast meri to pehli pasand hai

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  3. कैसे सहते हो वक्त के रंज,
    वो तिरछे तिरछे तंज
    अपने हालत यूँ न छिपाओ,
    तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
    यह मौन बड़ा घातक होता है।
    इसे यूँ न आजमाओ,
    तुम कैसे हो? कुछ तो बताओ।
    sunder gehre bhav,badhai

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  4. भावों से भरी ...एहसासों से सजी हुई ...वाह

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  5. सघन एहसास -- खूबसूरत भाव

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