स्मृतियों में सजग रहे स्वर्ग-नर्क की परिणति,
पाप-पुण्य से रंजित रहती मेरे कर्मो की गति ,
तेरे भी तो कर्मो का कोई लेखा-जोखा होगा -
रह-रहकर तुने भी तो अपने अन्यायों को जोड़ा होगा
चैन के नीद क्या तू सोता होगा दैव हमारे लिखकर
कष्टों के अम्बार लगाए तुने मानव जीवन पर
हमारी भाग्याख्या को तुने क्या फ़िर से वांचा होगा ?
अपनी त्रुटियों को क्या तुने फ़िर ख़ुद ही जांचा होगा ?
अपने लिखे भाग्य ख़ुद ही पर अजमा कर देखो।
पल भर मानव जीवन में तुम आकर देखो ...
प्रभु हो ! सब कुछ तुम कर जाओगे पर -
तुम पल भर भी मानव न रह पाओगे
एक अच्छी रचना
ReplyDeletebahut khoob ..umdaa likhaa hai aapne..aur haan aake blog mein ek aakarshna hai..shaayad un padchinhon ke kaaran.
ReplyDeleteaapki kalam ke bhaav to aise lage jaise hamare hi sawal ho. bahut pyari rachna "हमारी भाग्याख्या को तुने क्या फ़िर से वांचा होगा ?
ReplyDeleteअपनी त्रुटियों को क्या तुने फ़िर ख़ुद ही जांचा होगा"