प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, June 30, 2009

मानव न बन पाओगे


स्मृतियों में सजग रहे स्वर्ग-नर्क की परिणति,
पाप-पुण्य से रंजित रहती मेरे कर्मो की गति ,
तेरे भी तो कर्मो का कोई लेखा-जोखा होगा -
रह-रहकर तुने भी तो अपने अन्यायों को जोड़ा होगा

चैन के नीद क्या तू सोता होगा दैव हमारे लिखकर
कष्टों के अम्बार लगाए तुने मानव जीवन पर
हमारी भाग्याख्या को तुने क्या फ़िर से वांचा होगा ?
अपनी त्रुटियों को क्या तुने फ़िर ख़ुद ही जांचा होगा ?

अपने लिखे भाग्य ख़ुद ही पर अजमा कर देखो।
पल भर मानव जीवन में तुम आकर देखो ...
प्रभु हो ! सब कुछ तुम कर जाओगे पर -
तुम पल भर भी मानव न रह पाओगे

3 comments:

  1. bahut khoob ..umdaa likhaa hai aapne..aur haan aake blog mein ek aakarshna hai..shaayad un padchinhon ke kaaran.

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  2. aapki kalam ke bhaav to aise lage jaise hamare hi sawal ho. bahut pyari rachna "हमारी भाग्याख्या को तुने क्या फ़िर से वांचा होगा ?
    अपनी त्रुटियों को क्या तुने फ़िर ख़ुद ही जांचा होगा"

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