प्यारे पथिक
जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह
Tuesday, June 23, 2009
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जीवन दिग्भ्रमित ,
ReplyDeleteमृत्यु रक्तरंजित...
कैसे हो मोक्षपान ?
पात्र सभी पतित ।
हं.............................म
गंभीर चिन्तन!
ReplyDeletegambhir aur shaandar rachana
ReplyDeletebahut hi sundar .......gambhirata liye huye.....ek bhawan sundar
ReplyDeleteवाह !!! मन बाँध गयी आपकी यह रचना.......
ReplyDeleteपवित्र भावः ,शाश्वत चिंतन और अद्वितीय अभिव्यक्ति.....काव्य की इस सुन्दर निर्झरनी में उतर बड़ा सुख पाया मन ने....
शब्द हैं कम,
ReplyDeleteगहरा हैं मर्म
जीवन का मान
म्रत्यु का सम्मान