प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, June 23, 2009

मोक्षपान



झंझावातों के आँगन
तिनको के मकान ।
संघर्ष ही प्रधान या -
पलायन समाधान।
लक्ष्य को निर्वासन,
समर्पण के विकल्प ।
प्रयास सभी व्यर्थ,
क्या दीर्घ क्या अल्प ।
किसका हो आवाहन?
किसको दे हविस ?
किसका हो चरण वंदन ?
किसका लें आशीष ?
जीवन दिग्भ्रमित ,
मृत्यु रक्तरंजित...
कैसे हो मोक्षपान ?
पात्र सभी पतित ।

6 comments:

  1. जीवन दिग्भ्रमित ,
    मृत्यु रक्तरंजित...
    कैसे हो मोक्षपान ?
    पात्र सभी पतित ।

    हं.............................म

    ReplyDelete
  2. गंभीर चिन्तन!

    ReplyDelete
  3. bahut hi sundar .......gambhirata liye huye.....ek bhawan sundar

    ReplyDelete
  4. वाह !!! मन बाँध गयी आपकी यह रचना.......

    पवित्र भावः ,शाश्वत चिंतन और अद्वितीय अभिव्यक्ति.....काव्य की इस सुन्दर निर्झरनी में उतर बड़ा सुख पाया मन ने....

    ReplyDelete
  5. शब्द हैं कम,
    गहरा हैं मर्म
    जीवन का मान
    म्रत्यु का सम्मान

    ReplyDelete

Blog Widget by LinkWithin