प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, January 12, 2010

बचना वो हँसकर मिलता है दोनों बाहें फैलाएं




बचना वो हँसकर मिलता है दोनों बाहें फैलाएं
मुश्किल में होगा न जाने कौन सा काम बताए

चुनावी मौसम था, वादों की बयार में गुजर गया
आओ अब खुद सुलझाएं अपनी अपनी समस्याएँ 

रही बाट जोहती शिक्षक की किनती सारी कक्षाएँ
ट्युशन से पार लगेंगी इस साल की भी परीक्षाएं

सच ही होगी खबर दंगों की आज के अखबार में
सरकार ने कहा सब विपक्ष ने हैं फैलाई अफवाहें

दाल-रोटी महंगी हुई पर जीने की और विवशताएँ
घी-लकड़ी के दाम हैं दुने बड़ी महंगी पड़ेगी चिताएँ

न कर उम्मीद दास्ताँ किसी भी पीर औ' मुर्शिद की
बदलनी किस्मत हैं तुझको तो खुद गढ़ अपनी राहें

11 comments:

  1. बेहतरीन, सटीक रचना!!

    ReplyDelete
  2. फेसबुक से मित्र अभिजीत की टिप्पणी:

    Abhijit Bhadra commented on your note "बचना वो हँसकर मिलता ह&#...":

    "रही बाट जोहती शिक्षक की किनती सारी कक्षाएँ
    ट्युशन से पार लगेंगी इस साल की भी परीक्षाएं

    reminds me of SD Singh in 11th grade..."

    ReplyDelete
  3. दाल-रोटी महंगी हुई पर जीने की और विवशताएँ
    घी-लकड़ी के दाम हैं दुने बड़ी महंगी पड़ेगी चिताएँ
    सही सच बात लिखी है आपने इन पंक्तियों में .अच्छी लगी यह पंक्तियाँ शुक्रिया

    ReplyDelete
  4. न कर उम्मीद दास्ताँ किसी भी पीर औ' मुर्शिद की
    बदलनी किस्मत हैं तुझको तो खुद गढ़ अपनी राहें
    बहुत सही बातें कही हैं लाजवाब गज़ल दूसरा शेर भी बहुत अच्छा लगा। इस सुन्दर गज़ल के लिये बधाई और आशीर्वाद
    हाँ एक खुशखबरी दूँ अप्रल के पहले हफ्ते मे मैं य़ू एस ए आ रही हूँ मगर शायद तुम से बहुत दूर होऊँगी कैलिफोर्निया मे।

    ReplyDelete
  5. चुनावी मौसम था, वादों की बयार में गुजर गया
    आओ अब खुद सुलझाएं अपनी अपनी समस्याएँ
    यथार्थपरक रचना, आज की सच्चाई बयान करती
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन यथार्थ! सूक्ष्म अवलोकन!

    ReplyDelete
  7. वाह..!
    बहुत सुन्दर!
    लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की
    हार्दिक शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  8. itni acchi srahna ke liye shukriya!

    चुनावी मौसम था, वादों की बयार में गुजर गया
    आओ अब खुद सुलझाएं अपनी अपनी समस्याएँ

    दाल-रोटी महंगी हुई पर जीने की और विवशताएँ
    घी-लकड़ी के दाम हैं दुने बड़ी महंगी पड़ेगी चिताएँ

    bahut khoob ! mahgaai to zor par hai

    ReplyDelete
  9. सच ही होगी खबर दंगों की आज के अखबार में
    सरकार ने कहा सब विपक्ष ने हैं फैलाई अफवाहें ...

    KHOOBSOORAT SHER HAIN SAB KE SAB .......

    ReplyDelete
  10. रही बाट जोहती शिक्षक की किनती सारी कक्षाएँ
    ट्युशन से पार लगेंगी इस साल की भी परीक्षाएं
    वाह बहुत सटीक व्यंग है...अच्छी रचना है आपकी...लिखते रहें.
    नीरज

    ReplyDelete

Blog Widget by LinkWithin