क्यों मन में एक शून्य हैं पनपा,
क्या विराम दूँ अभिव्यक्ति को?
क्या विराम दूँ अभिव्यक्ति को?
न पाषाण हूँ, न मैं कोई बुद्ध,
न पक्ष में, न मैं किसीके विरूद्व।
क्यों फ़िर हृदय-संवेदना च्युत,
सिर्फ़ शून्य! प्रवाह सभी अवरुद्ध।।
न मुझे कामना की प्यास ,
न मुझे कामना की प्यास ,
न मुझे निर्वाण की कोई आस।
विदेह ह्रदय हर भावना से मुक्त,
क्यों फ़िर ह्रदय न गीत साधना से युक्त?
नहीं पसीजता लेस भर हृदय
किसी भी करुण क्रौंच-क्रंदन पर,
नहीं दहकता सूत भर ह्रदय
आज स्वयं के भी मान-मर्दन पर
नहीं दहकता सूत भर ह्रदय
आज स्वयं के भी मान-मर्दन पर
दिग्भ्रमित पथिक अथक ढूंढता हो
मंजिले ज्यूँ मध्य के पड़ाव पर
शब्द वसन लपेटे खडा हूँ, नग्न बाज़ार में,
क्यों फिर न टपकता काव्य-अश्रु अभाव पर?
बौधिक हो रही है काव्य-रचना,
दर्द नहीं इसमे संसार का,
रंगा-पुता हैं हर शब्द पर,
रंगा-पुता हैं हर शब्द पर,
अंश नहीं हैं इसमें प्यार का,
सजे हुए हर्फ बेतरकीब कई ,
सजे हुए हर्फ बेतरकीब कई ,
कोई सलीका नहीं इनमे इज़हार का
साज-सज्जित और अलंकृत हैं छंद
क्यों फिर भाव नहीं हैं कतिपय अहसास का ?
क्यों मन में एक शून्य हैं पनपा,
क्या विराम दूँ अभिव्यक्ति को?
बहुत खूब... दिल में एक सिहरन सी उठ गयी
ReplyDeleteक्यों मन में एक शुन्य हैं पनपा,
ReplyDeleteक्या विराम दूँ अभिव्यक्ति को?
सुन्दर अभिव्यक्ति है।
बधाई!
बहुत सही!
ReplyDeleteबौधिक हो रही है काव्य-रचना,
ReplyDeleteदर्द नहीं इसमे संसार का,
रंगा-पुता हैं हर शब्द पर,
अंश नहीं हैं इसमें प्यार का,
सजे हुए हर्फ बेतरकीब कई ,
कोई सलीका नहीं इनमे इज़हार का
साज-सज्जित और अलंकृत हैं छंद
क्यों फिर भावः नहीं हैं कतिपय अहसास का ?
क्यों मन में एक शुन्य हैं पनपा,
क्या विराम दूँ अभिव्यक्ति को?
अपने अन्तरमन की सुन्दर अभिव्यक्ति है कभी कभी सब के साथ ऐसा होता हैऔर उसके बाद ही एक सुन्दर रचना का जन्म होता है शुभकामनायें
जय हो..........
ReplyDeleteसुधीर जी , निहाल कर दिया
गीत पढ़ कर अत्यन्त आनन्द मिला..........
गीत क्या है संवेदना के चरमोत्कर्ष का चरम बिन्दू है................
आपको बधाई अभिनव शब्दावली और अनुपम शैली के लिए..........
जय हो !
सुन्दर , अत्यंत सुन्दर
ReplyDeleteबस एक ही शब्द - उत्कृष्ट !
ReplyDeleteइन्हें संपादित कर देगें ?
शुन्य=शून्य , पाषण=पाषाण , आश्रु=अश्रु , आभाव=अभाव , भावः=भाव
शुक्रिया !
आदरणीय अरविन्द मिश्रा जी,
ReplyDeleteत्रुटियों की ओर ध्यानाकर्षण के लिए आभार. सभी शब्दों की वर्तनी सुधार दी है. आशा है कि आप भविष्य में भी इसी प्रकार स्नेह बनाये रखेंगे. सादर
गम्भीर अभिव्यक्ति। पढकर अच्छा लगा। बधाई।
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
aapka writing style diff hai......kabhi kabhi....maaf kijiyega....bachchan ji ki jhalak mil jaati hai :-)
ReplyDelete