मित्रों,
ऐसे ही फुर्सत के कुछ लम्हों में एक ताल के किनारे बैठे हुए, मेरोरियल डे के दिन (मई ५, २०१०) चंद पंक्तियाँ मन में उपजी...उन्हें सूफियाना रंग और विस्तार देकर प्रस्तुत कर रहा हूँ, वैसे तो सूफी गीतों पर मेरी कोई पकड़ नहीं हैं पर फिर भी विश्वास है कि आप मेरी इस कोशिश को सदैव की भांति अपना स्नेह देंगे.
सादर,
सुधीर
सादर,
सुधीर
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
दाग देय देंह को कोई, या मिट्टी में मिट्टी दबवाबे
पिया-मिलन की आस है, बाबुल के रिश्ते बिसरावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
सुलगी जब नयनन की बाती, दहकी सांसों से छाती
बहुत जली पीहर मैं तो, विरह की तपन में मैं तो
कोई तो पिय को बतलावे, लेप-चंदन से मिट न पावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
पीहर के खेल-तमाशे, कुछ बाँधे कुछ समझ न आवे
पिय ने बिसरा मोको पर जियरा पिय को न बिसरावे
इक नेह की डोर से बँधे हैं कैसे कोई बंधन छुटबावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
जग की है रीति पुरानी, पीहर का कितना दाना पानी
पग-फेरे की बात थी अपनी, निठुर की देखो मनमानी
कैसे भूले वो प्रेम-कहानी, कोई तो उनको याद करावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
दाग देय देंह को कोई, या मिट्टी में मिट्टी दबवाबे
पिया-मिलन की आस है, बाबुल के रिश्ते बिसरावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
जग की है रीति पुरानी, पीहर का कितना दाना पानी
पग-फेरे की बात थी अपनी, निठुर की देखो मनमानी
कैसे भूले वो प्रेम-कहानी, कोई तो उनको याद करावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
दाग देय देंह को कोई, या मिट्टी में मिट्टी दबवाबे
पिया-मिलन की आस है, बाबुल के रिश्ते बिसरावे
कहे सुधीर केहि बिधि, मिट्टी से मिट्टी मिल जावे
ऐसा घोर वैराग्य !
ReplyDeleteबहरहाल बहुत सुंदर है.
खूबसूरत पोस्ट
ReplyDeletebadhiya sirji
ReplyDeleteआईये जानें ... सफ़लता का मूल मंत्र।
ReplyDeleteआचार्य जी
बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन - मृत्यु के सच को बताती सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह..!
ReplyDeleteरचना पढ़कर तो भर्तृहरि का वैराग्य शतक याद आ गया!
wow ......good as usual
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपके ब्लाग का कलात्मक अन्दाज देखकर मन गदगद् हो गया। रचना तो अच्छी है ही।
ReplyDeleteआपको बधाई।
फेसबुक से मित्र अभिजित का उत्साहवर्धन
ReplyDeleteAbhijit Bhadra commented on your note "केहि बिधि मिट्टी से म&#...":
"bahut khoob, nishthur ko nithur kar sakte hain?"
धन्यवाद अभिजीत, आपका सुझाव अच्छा लगा, निष्ठुर को निठुर कर दिया है...
ReplyDeleteAnother comment from Facebook:
ReplyDeletePankaj Mahajan commented on your note "केहि बिधि मिट्टी से म&#...":
"Nice !"