प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, June 1, 2010

उसका आया है ख़त कि भूल जाऊं उसे


आया है ख़त उसका कि अब भूल जाऊं उसे
ग़ज़ल न रही वो मेरी, अब न गुनगुनाऊ उसे

रहा यतीम ख्याल सुनहरा तेरे मेरे रिश्ते का
जब न कोई निस्बत तुझसे तो क्या अपनाऊँ उसे

उफ़क तक भी न पहुंचा अहसास अक़ीदत का
खौफज़दा सजदों का सच, मैं क्या बतलाऊँ उसे

बढ़ गया बहुत आगे वो लेकर नाम तिजारत का
दिल औ' जज्बातों की बात अब क्या समझाऊँ उसे

सच कहता है वो बनकर रहनुमा हम गरीबों का
हालात-ए-मुफलिसी बयाँ करके  क्यों झूठलाऊँ उसे

नाम न दे सके जिस अहसास को दुनियादारी का  
क्यों ज़रूरी हैं कि मैं किसी नाम से बुलाऊँ उसे 

हद-ए-आईने में कैद हैं एक शख्स दास्ताँ तुझ सा
छोड़े खामोशियों की चिलमन,  तो पहचान पाऊँ उसे

7 comments:

  1. एेसी बातें उसने कैसे लिख दीं

    इस बात पर क्यों न दो लगाऊं उसे

    http://udbhavna.blogspot.com/

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  2. आया है ख़त उसका कि अब भूल जाऊं उसे
    ग़ज़ल न रही वो मेरी, अब न गुनगुनाऊ उसे

    बहुत खूब!

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  3. नाम न दे सके जिस अहसास को दुनियादारी का
    क्यों ज़रूरी हैं कि मैं किसी नाम से बुलाऊँ उसे

    और फिर एहसास का कोई नाम नहीं होता है

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  4. भावों को बड़े सलीके से पिरोया है ।

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