प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, December 15, 2009

माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा




माँगा खुदा से अब  न हो रहबर ज़माना मेरा |
बस हुआ संगदिल रहनुमाओं से दिल आजमाना मेरा ||

अपनी अपनी दूकान पर यहाँ सबके अपने रसूल,
बिकते मजहब,  बिकती मुहब्बत और बिकते उसूल
अश्कों को कीमत, हर अहसास को तिजारत कबूल
यूँ ही अपने वजूद के तोल-मोल  भाव तलाशना  मेरा

बस हुआ ठगते  रहनुमाओं का दाम लगाना मेरा
माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा



झूठ की सियासत में, हमेशा सच बदलते लोग
झूठे वादे, झूठी कसमे, झूठी रस्मे निभाते लोग,
झूठे फलक के नीचे ऐतबार के कच्चे-घर बनाते लोग
ऐसी ख्याली दुनिया में इक सब्जबाग तलाशना  मेरा

बस हुआ झूठे  रहनुमाओं का दिल बहलाना मेरा
माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा



फरेब से बचने को फरेब के जाल बिछाती दुनिया
कुछ ऊँचा उठने को सबके सर चढ़ जाती दुनिया
मतलब से नए खुदाओं के सजदे में सर झुकाती दुनिया
ऐसे में अपनी खुदगर्ज अजानों के नए  मायने तलाशना मेरा

बस हुआ फरेबी रहनुमाओं पे भरोसा जाताना मेरा
माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा



मंजिले खोकर भूले रास्ते को घर बनाते बन्दे
हक-ए-आरजू में फर्ज पर मिट्टी गिराते बन्दे
भुलाके दीन-ओ-ईमान, रहमत के कसीदे रटाते बन्दे
ऐसे भूले-बिसरे अरमानों में गुमशुदा ज़मीर तलाशना मेरा

बस हुआ  भटके रहनुमाओं को सरपरस्त बनाना मेरा
माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा


माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा
बस हुआ संगदिल रहनुमाओं से दिल आजमाना मेरा

10 comments:

  1. do baar padhi yah rachnaa

    kal shaayad fir padhoon

    kyonki ye hai hi baar baar padhne ke kaabil

    bahut hi dhaakad kavita

    abhinandan !

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  2. बहुत उम्दा!! एक सुन्दर नज्म!!

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  3. बहुत ही सधे हुए लफ़्ज़ों में....सशक्त कविता.....

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  4. बहुत ही बढ़िया रचना है।बधाई स्वीकारें।

    मंजिले खोकर भूले रास्ते को घर बनाते बन्दे
    हक-ए-आरजू में फर्ज पर मिट्टी गिराते बन्दे
    भुलाके दीन-ओ-ईमान, रहमत के कसीदे रटाते बन्दे
    ऐसे भूले-बिसरे अरमानों में गुमशुदा ज़मीर तलाशना मेरा
    बस हुआ भटके रहनुमाओं को सरपरस्त बनाना मेरा
    माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा

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  5. माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा...itnee ek hee panktee hee likhte to bhee rachna mahan kahlati!

    Waaqayi ise kayi baar padhni hogi!

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  6. मंजिले खोकर भूले रास्ते को घर बनाते बन्दे
    हक-ए-आरजू में फर्ज पर मिट्टी गिराते बन्दे
    भुलाके दीन-ओ-ईमान, रहमत के कसीदे रटाते बन्दे
    ऐसे भूले-बिसरे अरमानों में गुमशुदा ज़मीर तलाशना मेरा
    बस हुआ भटके रहनुमाओं को सरपरस्त बनाना मेरा
    माँगा खुदा से अब न हो रहबर ज़माना मेरा

    बहुत सुन्दर!
    धरातल से जुड़ी रचना!

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  7. झूठ की सियासत में, हमेशा सच बदलते लोग
    झूठे वादे, झूठी कसमे, झूठी रस्मे निभाते लोग,
    झूठे फलक के नीचे ऐतबार के कच्चे-घर बनाते लोग

    बहुत सुंदर
    आज झूठ झूठ ही कहां रहा है यही सच हो गया है

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  8. सच मे सुधीर तुम्हारी दी बहुत नलायक है हर बार पता नहीं क्यों तुम्हारा ही ब्लाग भूल जाती है। मगर जानती हूँकि तुम नाराज़ नहीं होते। मुझे लगा इस कविता मे तुम ने शायद मेरे लिये भी एक आध लाईन लिख ही दी। चलो अब की जो हुया सो हुआ ेआगे से कान पकडती हूँ।
    मुझे पूरी एाचना बहुत अच्छी लगी। आज की दुनिया का पूरा सच बहुत सुन्दर शव्दों मे उतारा है बधाई इस संवेदना से भरपूर रचना के लिये।

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