मौसम की करवट पर,
हवाओं की छम-छम पाजेब पर,
आशिक़ मिजाज पेडों को
जब रंग बदलते देखता हूँ
तो सोचता हूँ क्या यही प्यार है,
इश्क का इज़हार है
एक मौसम का साथ,
चंद दोपहरियों का ताप
जिनमे साथ कुछ धुप सही, कुछ छाया
हवाओं से फिर न जाने क्या रिश्ता बनाया
कि उनकी सर्द होते स्पर्श के स्पंदन से
पाकर एक अनुभूति अपने अंतर्मन में
पाकर एक अनुभूति अपने अंतर्मन में
कुछ यूँ पसर जाते हैं,
अपने पतझड़ के दर्द को भुलाकर भी,
यार के लिए रंगीन नज़र आते हैं ....
मौत के आगन में, दर्द के दामन में
दीदार-ए-यार से गुल सा खिल जाते है
(और एक हम हैं कि )
एक मौसम नहीं सौ ऋतुयें देखी हैं,
एक छत जो ईंट-ईंट जोड़ी है
उसके नीचे एक रिश्ता भी न रच पाते है
तेरे मेरे शब्दों में खुद अपनों से कट जाते हैं
अपने अपने गम का पत्थर लेकर
मुकम्मल रिश्तों को भी चुनवाते हैं
अपनी गुरूर की मैली चादर
झूठी खुशियों की खातिर इतना फैलाते हैं
सिर्फ गम के ज़ार-ज़ार पैबंद नज़र आते है
काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते
सांसों की शाख छोड़ने से पहले
एक बार ही सही ,
यार के लिए यूँ ही मुस्कुराते,
जाते जाते उसका दामन रंगों से भर जाते !!
काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते !!
एक मौसम नहीं सौ ऋतुयें देखी हैं,
ReplyDeleteएक छत जो ईंट-ईंट जोड़ी है
उसके नीचे एक रिश्ता भी न रच पाते है
तेरे मेरे शब्दों में खुद अपनों से कट जाते हैं
अपने अपने गम का पत्थर लेकर
मुकम्मल रिश्तों को भी चुनवाते हैं
अपनी गुरूर की मैली चादर
झूठी खुशियों की खातिर इतना फैलाते हैं
सिर्फ गम के ज़ार-ज़ार पैबंद नज़र आते है
bahut hi sunder panktiyan hain.......... dil ko chhoo gayin.........
बहारों के इश्क का एक रंगीन मौसम, उसमे लिपटे कुछ फ़लसफ़ाना खयाल, और उस पर एक दिलकश ख्वाहिश..वाह क्या बात है..मस्त!!!
ReplyDeleteप्रभावी रचना....
ReplyDeleteहवायों को हवाओं कर लें..
काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते
ReplyDeleteसांसों की शाख छोड़ने से पहले
एक बार ही सही ,
यार के लिए यूँ ही मुस्कुराते,
बेहतरीन भाव है. मौसम के बदल्रते आयाम को दरख्त के मानिन्द समेटने की तमन्ना
काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते
ReplyDeleteसांसों की शाख छोड़ने से पहले
एक बार ही सही ,
यार के लिए यूँ ही मुस्कुराते,
जाते जाते उसका दामन रंगों से भर जाते !!
काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते !!
बहुत खूबसूरत ख्वाहिश ...सुन्दर कविता ...!!
बहुत भावनापूर्ण तरीके से आपने एक सन्देश दिया
ReplyDeletebahut hi bhavpoorna rachna..........behad khoobsoorat.
ReplyDeleteप्यार और इश्क तो आपकी नज़रों में है जो इतना अच्छा देख पाते हैं और महसूस कर पाते हैं ...........खूबसूरत रचना है ......
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी है और फोटो भी....
ReplyDeleteadhbhut .....
ReplyDeleteओह! अपने बारे में कहूं तो प्रकृति के साथ कदमताल नहीं कर पा रहा।
ReplyDeleteजब नर्म होना था, सख्त हो गये।
दूब बनना था, मौसमी दरख्त हो गये!
"काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते
ReplyDeleteसांसों की शाख छोड़ने से पहले
एक बार ही सही ,
यार के लिए यूँ ही मुस्कुराते,
जाते जाते उसका दामन रंगों से भर जाते!!"
वाह....!
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति!
मौसम की करवट पर,
ReplyDeleteहवाओं की छम-छम पाजेब पर,
आशिक़ मिजाज पेडों को
जब रंग बदलते देखता हूँ
तो सोचता हूँ क्या यही प्यार है,
इश्क का इज़हार है
बहुत खूब ......सुधीर जी आपकी तो पहली पंक्तियों ने ही मन मोह लिया.....!!
prakriti se gahra prem hai hamko aur aapki is kavita ne to man hi moh liya haan..काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते" Kaash! aisa ho pata
ReplyDeleteइसे कहते हैं पोएटिक सेंस। यकीन जानिए आपने बहुत लाजवाब बात कही है। बधाई।
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते
ReplyDeleteसांसों की शाख छोड़ने से पहले
एक बार ही सही ,
यार के लिए यूँ ही मुस्कुराते,
जाते जाते उसका दामन रंगों से भर जाते !!
काश! हम भी एक मौसमी दरख्त हो पाते !!
अच्ना लाजवाब है मगर हम क्यों बने मौसमी दरख्त फिर हम मे और दूसरों मे फर्क क्या रह जायेगा? ये सही है जो अपना रंग नहीं बदलते उन्हें दुखी तो होना ही पडता है। कविता बहुत भावनात्मक और कमाल का शब्द शिल्प लिये है बधाई और शुभकामनायें अपने प्रति अपने छोटे भाई का स्नेह देख कर अभिभूत भी हूँ