प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, October 13, 2009

साँसों में लिपटी पड़ी है मिट्टी, लोग उठाते क्यों नहीं.




इश्क का है फ़साना, सबको खुल कर बताते क्यों नहीं.
दिल पे हैं ज़ख्म कई, ग़ज़ल कोई गुनगुनाते क्यों नहीं

वो कहते हैं कि इश्क में शर्म-औ'-हया हैं पिछले ज़माने की बातें,
हमने तो कह दिया है खुलकर, तुम अब नजरें मिलाते क्यों नहीं

बहुत मजाजी है मिजाज़-ए-यार हमारे दिलबर का,
ख़त लिखते हैं कि हम कब से रूठे हैं, मानते क्यों नहीं

दिल लगाकर दिल मिटाना हैं आदत हुस्नवालों की,
वो आकर मजबूरी-ए-हालात गिनाते क्यों नहीं

वक्त की हवाएं धुंधला देती हैं हर मंजर निगाहों में,
कितने तूफां गुजरे, तेरे ख्याबों को मिटाते क्यों नहीं.

इश्क में जलकर मर मिटना तो हर परवाने का हैं जुनूँ,
कत्ल हुए कितने, लोग शमाँ-ए-बज्म को बुझाते क्यों नहीं

बहुत रुस्वां हुआ हूँ तेरे इश्क की खातिर मैं,
तुम बीती बातों से कुछ पर्दा उठाते क्यों नहीं

देते ही रहते हैं तंज़ के मुबारक तोफहे मुझको,
नाकाम फसानों को ज़मानेवाले भुलाते क्यों नहीं 

गम-ए-हिज्र का मय औ' मीना से हैं रिश्ता पुराना ,
कशाने-इश्क पूछे है साकी पर पिलाते क्यों नहीं.

कब का मर गया है दास्ताँ उसके जाने के बाद,
साँसों में लिपटी पड़ी है मिट्टी, लोग उठाते क्यों नहीं.

16 comments:

  1. साँसों में लिपटी पड़ी है मिट्टी, लोग उठाते क्यों नहीं.

    यह पंक्ति दिल छू गयी..

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  2. देते ही रहते हैं तंज़ के मुबारक तोफहे मुझको,
    नाकाम फसानों को ज़मानेवाले भुलाते क्यों नहीं


    -बहुत सुन्दर!! पसंद आई.

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  3. बहुत रुस्वां हुआ हूँ तेरे इश्क की खातिर मैं,
    तुम बीती बातों से कुछ पर्दा उठाते क्यों नहीं
    सुन्दर बधाई

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  4. इश्क में जलकर मर मिटना तो हर परवाने का हैं जुनूँ,
    कत्ल हुए कितने, लोग शमाँ-ए-बज्म को बुझाते क्यों नहीं



    simple awesome bhai...

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  5. कब का मर गया है दास्ताँ उसके जाने के बाद,

    साँसों में लिपटी पड़ी है मिट्टी, लोग उठाते क्यों नहीं.
    बहुत सुन्दर

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  6. बाद मी आती हूँ दाँत मे दर्द है शाम को शुभकामनायें

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  7. बहुत सुन्दर।
    धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

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  8. गज़ल को बहुत इतमिनान से पढती हूँ उस समय पढ नहीं पाई थी । आब सोच रही हूँ कि कमेन्ट किस किस पँक्ति के लिये दूँ अच्छा था ये कह कर चली जाती लाजवाब । अब इस गज़ल की एक एक लोने क्या शब्द भी लाजवाब है पूरी गज़ल दिल मे उतर गयी।
    वक्त की हवाएं धुंधला देती हैं हर मंजर निगाहों में,
    कितने तूफां गुजरे, तेरे ख्याबों को मिटाते क्यों नहीं.

    इश्क में जलकर मर मिटना तो हर परवाने का हैं जुनूँ,
    कत्ल हुए कितने, लोग शमाँ-ए-बज्म को बुझाते क्यों नहीं
    बहुत खूबसूरत शेर है बधाई मेरे सभी छोटे बडे भाई लाजवाब शायर हैं पता नहीं येबहन ही क्यों नालायक रह गयी दीपावली की आपको और पूरी परिवार को शुभकामनायें

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  9. बेहतरीन रचना बहुत अच्छा लिखा है आपने

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  10. कब का मर गया है दास्ताँ उसके जाने के बाद,
    साँसों में लिपटी पड़ी है मिट्टी, लोग उठाते क्यों नहीं.


    yeh panktiyan bahut achci lagin...........

    behtareen.........

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  11. बहुत खूबसूरत...दिल को छू लेने वाली...

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  12. बहुत मजाजी है मिजाज़-ए-यार हमारे दिलबर का,
    ख़त लिखते हैं कि हम कब से रूठे हैं, मानते क्यों नहीं........waise to sabhi line achchi hai but this one is fantastic

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  13. साल की सबसे अंधेरी रात में
    दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
    लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी

    कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
    अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
    झटकें सभी तकरार ज्यों आयी-गयी

    =======================
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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