सूरज बुझाकर जब शाम के आँचल से,
उस सांवली रात का चेहरा निहारा था,
वही सूना पथ था, खुला ह्रदय पट था
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
हवाओं ने हलके से केश बादलों का उडाया था,
चाँद भी चन्दनी का हाथ थामे छत पर आया था
इनकी आँखों में छलकता प्यार हमारा था,
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
मिलन की प्यास ले दरिया खिसक कुछ पास आया था,
वहीं माझी ने किसी कश्ती से एक गीत उठाया था,
बोल सारे नए थे पर भाव वही पुराना था,
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
कई महफिलों में पढ़कर आया था ग़ज़ल तेरे नाम की ,
दबी-ज़ुबाँ लोगों ने बज्म में तेरा नाम भी फुसफुसाया था,
यूँ तो बात तेरी थी पर तखल्लुस हमारा था
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
उस सांवली रात का चेहरा निहारा था,
ReplyDeleteवही सूना पथ था, खुला ह्रदय पट था
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
...वाह.
एक शेर अर्ज किया है-
हासिले-हुस्नो-इश्क बस है यही
आदमी आदमी को पहचाने.
दरमियान तेरे और मेरे, इंतज़ार बस तुम्हारा था ...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत लिखा है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बोल सारे नए थे पर भाव वही पुराना था,
ReplyDelete...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
बहुत खूबसूरत
हवाओं ने हलके से केश बादलों का उडाया था,
ReplyDeleteचाँद भी चन्दनी का हाथ थामे छत पर आया था
इनकी आँखों में छलकता प्यार हमारा था,
...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
...वाह....! बहुत खूब...!!