प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, November 16, 2010

ज़िन्दगी दो अल्फाजों में सिमट आती है


ज़िन्दगी दो अल्फाजों में सिमट आती है
आह तेरे नाम से  जब भी निकल आती है

दौर-ए-उल्फत में बहके होंगे कदम हमारे
अब तो तेरी हर बात संजीदा नज़र आती है

कैसे रखते हैं लोग दिल में हसरतें हज़ार
इक आरज़ू में तेरी ये उम्र गुजर  आती हैं

न दिखा ज़ख़्म औ' जज़्बात ज़माने-भर को
हों करम उसके तो ये रहमत नसीब आती है

हैं यकीन दास्ताँ ठुकराएगा वो दिल तेरा
देंखे उनके जानिब ये कब खबर आती है

9 comments:

  1. भावों की प्रगाढ़ सान्ध्रता।

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  2. आपको देवउठनी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई

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  3. बहुत दिनो बाद पढा है। कहाँ रहते हो आज कल। कमाल की गज़ल है
    कैसे रखते हैं लोग दिल में हसरतें हज़ार
    इक आरज़ू में तेरी ये उम्र गुजर आती हैं

    न दिखा ज़ख़्म औ' जज़्बात ज़माने-भर को
    हों करम उसके तो ये रहमत नसीब आती है
    वाह क्या बात है। ईद की हार्दिक शुभकामनायें।

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  4. कैसे रखते हैं लोग दिल में हसरतें हज़ार
    इक आरज़ू में तेरी ये उम्र गुजर आती हैं

    कितनी सुन्दर और गहरी बात कह दी…………बहुत बढिया गज़ल्।

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  5. प्रभावशाली ग़ज़ल कही है भाई आपने.

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  6. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......

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  7. ग़ज़ल बहुत ही प्रभावोत्पादक है....

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  8. कैसे रखते हैं लोग दिल में हसरतें हज़ार
    इक आरज़ू में तेरी ये उम्र गुजर आती हैं

    Waah kamaal hai :-)

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