प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, May 25, 2010

मृत्यु से अनुरोध


शरणाकांक्षी अंतर्मन
आहात देह
खंडित दीप
च्युत नेह

रह रहकर
गिरता मन
ज्योति दण्डित
तम सघन

नयन स्थिल
मेधा विकल
प्रतीक्षारत विभा
रवि विह्वल

आलंबनाकांक्षा
अलिंगनानुरोध
श्वांस समर्पण
जीवन प्रतिरोध

पाप-पुण्य से दूर
स्वर्ग-नर्क से इतर
हो साथ तेरा
वही मार्ग प्रखर

हो स्पर्श तेरा
पावन-पुनीत
भाव पराजय का
हो शुन्य प्रतीत

तुम जयी बन
ले जाओ मुझसे
मेरे झूठे अहम्
जो निर्वासित जग से

6 comments:

  1. पहली बार आई हूँ आपके यहाँ.ज़िक्र करूँ आपके चित्रों का?
    समन्दर ?नही ये तो कोई नदी लग रही है उसके तट पर एकाकी घूमता 'कोई'.जाने किसकी खोज में ? रेत पर बने पद-चिह्न,ये उभरे पद-चिह्न नही मालूम किसके प्रतीक है,पहली बार देख रही हूँ ऐसे चिह्न.इतना जानती उभरे हुए हो या गहरे,एक लहर इनके अस्तित्व को खत्म क देंगे किन्तु कभी कोईकिनारा ऐसा देखा है जहां ये न हो?
    नदी और समंदर की ख़ूबसूरती इन्ही से है.

    'आलंबनाकांक्षा
    अलिंगनानुरोध ' दो शब्दों में अपनी और हर स्नेहिल,प्रेमिल मन की बात,अभिलाषाप्रकट कर दी.

    'पाप-पुण्य से दूर
    स्वर्ग-नर्क से इतर
    हो साथ तेरा
    वही मार्ग प्रखर
    हो स्पर्श तेरा
    पावन-पुनीत
    भाव पराजय का
    हो शुन्य प्रतीत'
    निसंदेह एक 'प्लेटोनिक प्यार'या 'प्यार का उद्दात्त' रूप है.
    आकर्षण ,दैहिक मोह से परे प्यार इसी रूप में अभिव्यक्त होता है और ............'ईश्वर' बन जाता है.
    वही मिला मुझे आपकी कविता में.
    शुभकामनाएं.

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  2. सुन्दर शब्दों के संयोजन से रची सुन्दर अनुभूति ....

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  3. सुन्दर वृत्तचित्र ।

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  4. pahali baar aayee bahut achchha likhaa hai ...........mere pas shbda nahii hai .........prashansha ke liya..........bahut achchha

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