प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Saturday, May 22, 2010

सुना है कि खुदगर्ज दुआएँ मिलती नहीं


सुलग कर रह गया चाँद फलक पर,
अंधियारी रातों में शोखियाँ चलती नहीं
मांग लेता खुदा से मैं भी तुझको पर,
सुना है कि खुदगर्ज दुआएँ मिलती नहीं

क्या करता मैं नुमाइश इन ज़ख्मों की
मुर्दा-दिलों में टीस कोई उठती नहीं
दौड़ना रही मजबूरी मेरी उम्र भर
गिरे देवों के लिए भी भीड़ रूकती नहीं

हमदर्द तलाशता क्या इस शहर में
गैर के फ़सानों पर कोई रोता नहीं
तन्हाइयों से रहा खुद बतियाता मैं
दर्दीले नगमों पर कोई वक्त गँवाता नहीं

थी उम्मीद मुझे एक और मुलाकात की
सोची बातें हज़ार पर कहना आसाँ नहीं
हैं ज़ख्म इतने हैं अपने चाक जिगर पर
गैरों को दिखाना अब मुझे गंवारा नहीं

बहती रहीं आँखों से, चाह मिटती नहीं
क्यों कोशिशें तुझे भूलने की चलती नहीं
 मांग लेता खुदा से मैं भी तुझको पर,
सुना है कि खुदगर्ज दुआएँ मिलती नहीं

5 comments:

  1. "मांग लेता खुदा से मैं भी तुझको पर,
    सुना है कि खुदगर्ज दुआएँ मिलती नहीं"
    बहुत खूब

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  2. मांग लेता खुदा से मैं भी तुझको पर,
    सुना है कि खुदगर्ज दुआएँ मिलती नहीं
    behatareen

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  3. थी उम्मीद मुझे एक और मुलाकात की
    सोची बातें हज़ार पर कहना आसाँ नहीं
    हैं ज़ख्म इतने हैं अपने चाक जिगर पर
    गैरों को दिखाना अब मुझे गंवारा नहीं...

    लोग नमक लिए फिरते हैं हाथों में ...जख्म दिखाना ठीक भी नहीं ...

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  4. सुन्दर भाव ...खूबसूरत अभिव्यक्ति

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