कल पलटते उस पुरानी एल्बम के पन्ने -
फिर मिली एक तस्वीर पे, वो बेकरार शाम
कुछ शरारतें हमेशा की तरह मुठ्ठियों में भींचे
वो शोख चंचल आँखे कुछ मस्ती में नीचे खीचें
जुल्फे रब्त पर एक सवाल की तरह उलझी सी,
और एक लम्बी चुप्पी की सिरहन, ठंडी सी
जो उस पल से अब तलक चली आई थी
नावेल के मुड़े पेज की तरह, ज़िन्दगी
अब भी किसी सफे पर बस रुकी सी लगी
बात तो कल की थी मेरे हमदम पर
कहानी अब तक चली सी लगी
यूँ लगा एक पल की कशमकश की सिलवट में
एक गुमशुदा सी जिंदगी बैठी हो जैसे
तुम आओ न आओ, पर ऐ खुदा!
इस पल पर मैं लौटाता रहूँ ऐसे ...
waah yaadein kabhi kabhi kitna sukh deti hai...novel ke mude panne ki baat bha gayi...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
Bilkul janaab ham to yahi manayenge ki aap aise hi laute rahein...Dileep ji ke tarah hamein bhi novel ka muda page bhaya :-)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteतुम आओ ना आओ इस पल पर ऐसे ही लौटता रहा हूँ मैं ...
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति...!!
अतीत से वर्तमान का मिलन अपने आप में कविता होता है शायद! उसे बस लिख लेना भर होता है!
ReplyDeleteएक आधारबिन्दु होने से जीवन का अवमूल्यन सरल हो जाता है । लौटकर वहीं आने का मन करता है ।
ReplyDelete