प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Saturday, April 24, 2010

कुछ कथाओं की अपूर्णता ही देती हैं तृप्ति ...



कुछ कथाओं की अपूर्णता ही देती हैं तृप्ति ...
कौन जाने अन्यथा जीवन-पूर्णता भी क्या मुक्ति?

स्वयं तराशता परिधियाँ अपनी  कामनाओं की
उकेरता अदृश्य-खंडित सीमायें भावनाओं की
हैं तो असंख्य आकांक्षाएं सहज समाधान की
किन्तु दृष्टव्य नहीं कोई राह मुक्त-व्यवधान की

प्रस्तुत विविध विकल्प अनन्त वैभव विस्तार के
तोल-मोल भाव लग रहे हैं भावों के संसार के
विक्रयशील मनुज, मार्ग कई हैं आत्म-व्यापार के
उऋण न देह यहाँ, तो पथ क्या हों प्राण-प्रसार के

अदृश्य जीवन-मंथन अनवरत चल रहा प्रारब्ध से  
उपजता मात्र हलाहल, विलुप्त रत्न सभी  प्रसाद से
वरण करता रहा, क्या अपेक्षित करूँ शिवाराध्य से
मोक्ष-तृष्णा से मरूं या तृप्त प्रयाण  हो प्रमाद से

कौन जाने अन्यथा जीवन-पूर्णता भी क्या मुक्ति?
कुछ कथाओं की अपूर्णता ही देती हैं तृप्ति ......

3 comments:

  1. bas yahi sab padhne ke liye blog pe aata haun...Hindi ka chir parichit roop dekhne ko mila..abhar....

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  2. कथाओं का अन्त राय बनाने पर विवश करता है । यात्रा का सुख समाप्त हो जाता है ।

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  3. कौन जाने अन्यथा जीवन-पूर्णता भी क्या मुक्ति?
    कुछ कथाओं की अपूर्णता ही देती हैं तृप्ति ......
    Behad sachha sundar khayal!

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