नाकिस सा गुस्सा उसका, बड़ी भोली सी अदाएँ
यह जवानी है मेरे दोस्त, इसे परदे क्या छिपाएं
शिकवा उन्हें कि हिचकी नहीं आती, याद नहीं करते
कभी भूले ही नहीं जिसे, उसे कोई कैसे याद दिलाएं
कासिद के साथ ही आई थी कुछ भीगी सी फिजाएँ
खाली ख़त में सब बयां कर गई तेरी अश्क धाराएँ
होंगे आशिक़ कई जो सहते जुल्म-ओ-सितम तुम्हारे
पर होगा हम सा न कोई, जो हर जख्म पर दे दुआएँ
तेरे दो बूँद आसुओं के सैलाब से मर जाता 'दास्ताँ'
फिर क्यों हर शक्स तेरे शहर का है पत्थर उठाये
bahut khoob !
ReplyDeleteWaah! kya baat hai....bahut umda!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
कभी भूले ही नहीं जिसे, उसे कोई कैसे याद दिलाएं
ReplyDeleteवाह वाह!
होंगे आशिक़ कई जो सहते जुल्म-ओ-सितम तुम्हारे
ReplyDeleteपर होगा हम सा न कोई, जो हर जख्म पर दे दुआएँ
अन्दाजे बयाँ क्या कहने !!
नाकिस सा गुस्सा उसका, बड़ी भोली सी अदाएँ
ReplyDeleteयह जवानी है मेरे दोस्त, इसे परदे क्या छिपाएं .nice
बेहतरीन!
ReplyDeleteअन्दाजें बंया क्या खुब है
ReplyDeleteशुभान अल्लाह
Khoobsoorat gazal....
ReplyDeleteतेरे दो बूँद आसुओं के सैलाब से मर जाता 'दास्ताँ'
ReplyDeleteफिर क्यों हर शक्स तेरे शहर का है पत्थर उठाये
सुन्दर लगी पंक्तियां!
होंगे आशिक़ कई जो सहते जुल्म-ओ-सितम तुम्हारे
ReplyDeleteपर होगा हम सा न कोई, जो हर जख्म पर दे दुआएँ
तेरे दो बूँद आसुओं के सैलाब से मर जाता 'दास्ताँ'
फिर क्यों हर शक्स तेरे शहर का है पत्थर उठाये
सुधीर शब्द नही मिल रहे। बस निशब्द हूँ तुम्हारी हर रचना की तरह बेहतरीन बहुत बहुत शुभकामनाये? महाशिवरात्री की बधाइ
bahut ache!!!
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