प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, August 18, 2009

निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस...

सारे पाठकों को राष्ट्र-स्वतंत्रता के ६२ वर्ष मुबारक!!


भर हुंकार उचक कर व्योम तक,
निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस॥

बहुत अर्पित किए हृदय-सुमन
तुमने मदन मंदिरों के पट पर।
आज राष्ट्र-देवी मांगतीं हैं तुझसे,
चिता-भस्म निमिष श्वास भर ॥

अलकों की ओंट में व्यर्थ गंवाई,
दिग्भ्रमित तुमने साँझ कई।
रुधिर-श्रृंगार से करो सज्जित माँ को,
बता दो सपूतों से वो बाँझ नही॥

तिमिर वेदना होती सर्वत्र जब
स्वार्थ-कामना से हर घट लिप्त हो।
मातृ-भवन हो आलोकित तब
बलिदानी पूत हृदय प्रज्वलित हो ॥

मातृ-अस्मिता पर घात लगाये,
बैठे हैं रिपु अदृश्य असंख्य सर्वत्र ।
युगों से धमनियों में फड़क रहा जो
उन्मुक्त करो वो विहंगम रक्त ॥

हो घोष ऐसा छिटक जाए दिशाएं कुछ,
कम्पित को शत्रु-ह्रदय देखकर रूप रौद्र ।
हविस हो अहम् सबके राष्ट्र-यज्ञ में ,
निखर आए संघर्ष-धनी भारत गोत्र ॥

कल्पना में भी जो उठे मातृ-आघात को ,
तोड़ दो निर्लज्य, धृष्ट अक्षम्य उद्दंड हस्त ।
विध्वंस हो बैरस्त भावग्रस्त जीव समस्त ,
खुले हो हर प्रहार को कवच बन हमारे उन्मुक्त वक्ष ॥

हमारा युद्ध ही न एकमात्र विकल्प हो ,
शान्तिप्रियता न हमारी हीनता कल्प हो ।
बतादो विश्व को हम नहीं बिसराया हुआ गीत हैं,
शांतिदूतों की पुरातन जीत की ही रीति हैं॥

बता दो भारतपूतों को असंभव कुछ नहीं ,
चाँद क्या सूरज की तपिस भी क्षम्य नहीं।
भर हुंकार उचक कर व्योम तक,
निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस॥

4 comments:

  1. भाई वाह क्या भाव हैं, । लाजवाब रचना के लिए बधाई

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  2. saadhu saadhu ..........
    waah sudhirji waah !
    aapki lekhni maa bharti ki jai ka udgosh kar rahi hai aur itnee urja ke saath kar rahi hai ki shabd shabd oj ka swaroop ho gaya hai..

    भर हुंकार उचक कर व्योम तक,
    निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस॥
    aisa kah k aap bharat ki jawaani me bal aur paraakram k naye aayaam sthapit kar rahe hain

    jabki
    अलकों की ओंट में व्यर्थ गंवाई,
    दिग्भ्रमित तुमने साँझ कई।
    रुधिर-श्रृंगार से करो सज्जित माँ को
    बता दो सपूतों से वो बाँझ नही॥
    in shabdon me aap sachet aur satark karte hue navpraan foonkne ka mahati karya kar rahe hain..........

    मातृ-अस्मिता पर घात लगाये,
    बैठे हैं रिपु अदृश्य असंख्य सर्वत्र ।
    sarhad paar k dushmanon par bhi nazar hai aapki aur .....

    कल्पना में भी जो उठे मातृ-आघात को ,
    तोड़ दो निर्लज्य, धृष्ट अक्षम्य उद्दंड हस्त ।
    विध्वंस हो बैरस्त भावग्रस्त जीव समस्त ,
    kah kar apni lekhni ke param daayitva ko bakhoobi nibhaaya hai aapne.............

    dhnya hai aisee lekhnee aur aise lekhak jo desh ki aan k liye likhte hain,....aur desh hit me sabse aage khade dikhte hain..........

    badhaai
    bahut bahut badhaai !

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  3. ultimate, superb, Jai hind, Jai bharat!

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