आँखों के करीने में कुछ तो चुभता हैं
मेरे टूटे रिश्ते का हिस्सा होगा शायद!!
एक उम्र हुई, जब वक्त के धुंधले में,
अनजाने में दुनियादारी की ठोकर से,
तेरे मेरे ख्याबों पर पाँव पड़ा था मेरा।
मेरे मजबूर हाथों से फिसला था
एक संग चलता संग-सा रिश्ता
पर बिखरा बेआवाज़ वो कांच-सा रिश्ता !!
और मैं बेखबर न तब समझ पाया था -
कि बंद मुठ्ठियों से मैं क्या खो आया था.
कितनी बार मैंने रिश्तों के बही-खाते,
ज़ज्बातों और समझोतों में बाँटे-छांटे।
पर वो बिखरा रिश्ता कहीं न सिमट पाया,
हर बार एक तेरा ही रिश्ता घट आया ।
अब वो हाथों से छूटा बिखरा-बिखरा रिश्ता
अक्सर इन तन्हा आँखों में मिल जाता हैं -
हुई मुद्दत पर अब भी चुभ जाता हैं -
आज भी ऐसा ही कोई किस्सा होगा शायद
आँखों के करीने में कुछ तो चुभता हैं
मेरे टूटे रिश्ते का हिस्सा होगा शायद!!
बहुत बेहतरीन!!
ReplyDeletekavita kitni komal
ReplyDeletekitni gahri
aur kitni sateek ho sakti hai ...
iska ek spasht udaaharan hai aapki kavita
waah
waah
अब वो हाथों से छूटा बिखरा-बिखरा रिश्ता
अक्सर इन तन्हा आँखों में मिल जाता हैं -
हुई मुद्दत पर अब भी चुभ जाता हैं -
____kamaal kar diya aapne
badhaai !
सुंदर. आंखें वास्तव में ही सब कुछ कहती हैं.
ReplyDeleteआँखों के करीने में कुछ तो चुभता हैं
ReplyDeleteमेरे टूटे रिश्ते का हिस्सा होगा शायद!!
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति.. हैपी ब्लॉगिंग
aankhe aur zuba jo nahi kahte use kavita kah jaati hai....hamhe to bahut pasand aayi
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