यादों के सिवा कुछ और नहीं, बस तन्हा-तन्हा।
यादों के दो हर्फ़ लिए, आयत सा मैं पढता जाता,
तेरे ही नाम के नुक्ते में,जीवन का हर अर्श मैं पाता
हर पल महसूस किया हैं तुझको अपनी हर बीती धड़कन में,
तेरी यादों के आँचल में ढांपा हैं ख़ुद को जीवन की हर सिहरन में,
तू मुझसे कुछ दूर सही, पर एक रिश्ता तो अब भी मुझसे बांधे हैं तुझको
रोते हम भी सबसे छुप-छुपकर पर तेरी यादों का जज्बा थामे हैं मुझको,
और कहूं क्या तुझसे मैं, अपने टूटे तन्हा दिल का हाल प्रिय,
इन यादों में तुम हो सो जन्नत हैं बाकी सब तो दोज़ख हाल प्रिय,
तेरे जाने का कोई गम मुझको नही -तेरी यादें जो अब आती हैं,
यह तो बस फ़िर मिलने की चाहत हैं जो अब तक तडपाती हैं।
मेरे होने न होने का इतना ही सबब होगा शायद मेरे हमदम !
तू मेरी यादों में हैं अब, मैं तेरी यादों में होऊंगा तब हरदम !
मेरे होने न होने का इतना ही सबब होगा शायद मेरे हमदम !
ReplyDeleteतू मेरी यादों में हैं अब, मैं तेरी यादों में होऊंगा तब हरदम !
जरूर यादो मे आप भी होंगे.
बहुत खूबसूरत इल्तजा. खूबसूरत रचना
अन्तहीन जीवन के पथ में, यादें आती-जाती हैं।
ReplyDeleteकभी-कभी ये तड़पाती हैं, कभी बहुत हरषाती हैं।।
सुधीर जी।
आपकी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए,
बधाई।
बहुत खूबसूरत लिखा है भाई जी
ReplyDeleteIn Jazbon ko sambhaal kar rakhiye.
ReplyDelete{ Treasurer-S, T }
बहुत सुंदर.
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