प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, April 27, 2010

दर्द-ए-दिल दिल तक ही रखूँ, यह ज़रूरी तो नहीं


दर्द-ए-दिल दिल तक ही रखूँ, यह ज़रूरी तो नहीं,
सरेआम रों दूँ, पर ऐसी भी मेरी मजबूरी  तो नहीं

ज़माने का दस्तूर निभाना, है हिदायत वाइज़  की
फिर मिलेगी जन्नत पर यह उम्मीद पूरी तो नहीं

डरता हूँ बेअदबी की तोहमत न दे मुझको  ज़माना
बस सच कहता हूँ, फितरत मेरी जी-हुजूरी  तो नहीं 

दर्द हद से गुजर गया होगा जर्ब चाक-जिगर का
आवाज भर्राई है पर ऑंखें उसकी सिंदूरी तो नहीं

खो गया कहीं रिश्ता हमारा वक्त की सियासत में
फिर भी पास है तू, एक हिचकी कोई दूरी तो नहीं

वो जाते जाते जिंदगी मेरी ख़लाओं से भर गया
शिकवा क्या करे दास्ताँ, जिंदगी अधूरी तो नहीं

Saturday, April 24, 2010

कुछ कथाओं की अपूर्णता ही देती हैं तृप्ति ...



कुछ कथाओं की अपूर्णता ही देती हैं तृप्ति ...
कौन जाने अन्यथा जीवन-पूर्णता भी क्या मुक्ति?

स्वयं तराशता परिधियाँ अपनी  कामनाओं की
उकेरता अदृश्य-खंडित सीमायें भावनाओं की
हैं तो असंख्य आकांक्षाएं सहज समाधान की
किन्तु दृष्टव्य नहीं कोई राह मुक्त-व्यवधान की

प्रस्तुत विविध विकल्प अनन्त वैभव विस्तार के
तोल-मोल भाव लग रहे हैं भावों के संसार के
विक्रयशील मनुज, मार्ग कई हैं आत्म-व्यापार के
उऋण न देह यहाँ, तो पथ क्या हों प्राण-प्रसार के

अदृश्य जीवन-मंथन अनवरत चल रहा प्रारब्ध से  
उपजता मात्र हलाहल, विलुप्त रत्न सभी  प्रसाद से
वरण करता रहा, क्या अपेक्षित करूँ शिवाराध्य से
मोक्ष-तृष्णा से मरूं या तृप्त प्रयाण  हो प्रमाद से

कौन जाने अन्यथा जीवन-पूर्णता भी क्या मुक्ति?
कुछ कथाओं की अपूर्णता ही देती हैं तृप्ति ......

Friday, April 9, 2010

पुरानी तस्वीर



कल पलटते उस पुरानी एल्बम के पन्ने -
फिर मिली एक तस्वीर पे, वो बेकरार शाम
कुछ शरारतें हमेशा की तरह मुठ्ठियों में भींचे
वो शोख चंचल आँखे कुछ मस्ती में नीचे खीचें
जुल्फे रब्त पर एक सवाल की तरह उलझी सी,
और एक लम्बी चुप्पी की सिरहन, ठंडी सी
जो उस पल से अब तलक चली आई थी

नावेल के मुड़े पेज की तरह, ज़िन्दगी 
अब भी किसी सफे पर बस रुकी सी लगी
बात तो कल की थी मेरे हमदम पर
कहानी अब तक चली सी लगी
यूँ लगा एक पल की कशमकश की सिलवट में
एक गुमशुदा सी जिंदगी बैठी हो जैसे
तुम आओ न आओ, पर ऐ खुदा!
इस पल पर मैं लौटाता रहूँ ऐसे ...
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