सारे पाठकों को राष्ट्र-स्वतंत्रता के ६२ वर्ष मुबारक!!

भर हुंकार उचक कर व्योम तक,
निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस॥
बहुत अर्पित किए हृदय-सुमन
तुमने मदन मंदिरों के पट पर।
आज राष्ट्र-देवी मांगतीं हैं तुझसे,
चिता-भस्म निमिष श्वास भर ॥
अलकों की ओंट में व्यर्थ गंवाई,
दिग्भ्रमित तुमने साँझ कई।
रुधिर-श्रृंगार से करो सज्जित माँ को,
बता दो सपूतों से वो बाँझ नही॥
तिमिर वेदना होती सर्वत्र जब
स्वार्थ-कामना से हर घट लिप्त हो।
मातृ-भवन हो आलोकित तब
बलिदानी पूत हृदय प्रज्वलित हो ॥
मातृ-अस्मिता पर घात लगाये,
बैठे हैं रिपु अदृश्य असंख्य सर्वत्र ।
युगों से धमनियों में फड़क रहा जो
उन्मुक्त करो वो विहंगम रक्त ॥
हो घोष ऐसा छिटक जाए दिशाएं कुछ,
कम्पित को शत्रु-ह्रदय देखकर रूप रौद्र ।
हविस हो अहम् सबके राष्ट्र-यज्ञ में ,
निखर आए संघर्ष-धनी भारत गोत्र ॥
कल्पना में भी जो उठे मातृ-आघात को ,
तोड़ दो निर्लज्य, धृष्ट अक्षम्य उद्दंड हस्त ।
विध्वंस हो बैरस्त भावग्रस्त जीव समस्त ,
खुले हो हर प्रहार को कवच बन हमारे उन्मुक्त वक्ष ॥
हमारा युद्ध ही न एकमात्र विकल्प हो ,
शान्तिप्रियता न हमारी हीनता कल्प हो ।
बतादो विश्व को हम नहीं बिसराया हुआ गीत हैं,
शांतिदूतों की पुरातन जीत की ही रीति हैं॥
बता दो भारतपूतों को असंभव कुछ नहीं ,
चाँद क्या सूरज की तपिस भी क्षम्य नहीं।
भर हुंकार उचक कर व्योम तक,
निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस॥