प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, May 12, 2009

एक कहानी अनकही

आज फ़िर एक बीते लम्हे ने
पुकारा मुझे, तेरा नाम लेकर।
टटोला गया फ़िर से वो रिश्ता,
जो रह गया था गुमनाम होकर
चुपचाप निकल आई थी आगे
यह बदनाम ज़िन्दगी मेरी
छोड़कर उजियारे दिन तेरे
लेकर अपनी रातें घनेरी
स्याह रात की इस चादर में,
ना थी कभी कोई उम्मीद मुझे।
सहलायेगा इस कदर -
मेरा बेचैन साया उठकर मुझे।
एक हसरत जो मैं समझा था कि
दफन आया हूँ तेरे दर पर कहीं।
रूह से लिपटकर साथ चली आयी हैं,
अब सुनाती हैं रोज एक कहानी अनकही।

3 comments:

  1. बढ़िया !
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  2. अच्‍छा लिखा है .. बधाई।

    ReplyDelete
  3. एक हसरत जो मैं समझा था कि
    दफन आया हूँ तेरे दर पर कहीं।
    रूह से लिपटकर साथ चली आयी हैं,
    अब सुनाती हैं रोज एक कहानी अनकही।

    -बहुत खूब!!

    ReplyDelete

Blog Widget by LinkWithin