प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, May 5, 2009

आओ एक कविता का सृजन करें


जीवन की विषमताओ ने खींची
हांथों में जो आडी-तिरछी रेखाएँ हैं,
उनमे, आओ, कुछ उमंग के रंग भरें,
आओ, एक कविता का सृजन करें।

सूनी-सूनी आँखों में छुपकर बैठा हैं,
एक उदास बड़ा, बूढा धूमल अंधड़,
उसकी तृप्ति को, आओ, सावन की एक बूँद बने,
आओ, एक कविता का सृजन करें

पत्थरीले प्रगतिपथ पर पड़ा यहाँ तिमिर सघन
हताशा का दामन थामे थककर खड़े वहां कदम कई
उनके हारे बिखरे पग में, आओ, अन्तिम दीपशिखा से जलें
आओ, एक कविता का सृजन करें

आशाओं से च्युत हो गिरते हो जहाँ मन विकल,
लक्ष्य विहीन होकर मार्ग निरखते हों नयन विह्वल
उनके आहात तन को सहलाने को, आओ, मृदुल स्पर्श बने
आओ, एक कविता का सृजन करें

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