प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Wednesday, April 22, 2009

तुझे चाहकर भुला न पाया, ये खता मेरी



तुझे चाहना, थी भूल मेरी, मेरे हमदम,
तुझे चाहकर भुला न पाया, ये खता मेरी।

अबतक तलाशता हूँ गुमनाम भीड़ में,
तेरा चेहरा इस उम्मीद के साथ।
मिल ही जाए शायद तू मुझे -
किसी मोड़ पर किसी रकीब के साथ।

गर तू मिलकर भी न देखे मेरी ओर,
कोई अफ़सोस न होगा मुझे।
कोई सबब तो मेरे इश्क का ही होगा
जो अब तक रोकता होगा तुझे।


जब फासले हमारे दिलों में हो तो,
जिस्म की दूरियों का क्या गम?
खेल-ऐ-आरजू में कत्ल-ऐ-दिल हकीकत,
दोस्त, कभी हम
तो कभी तुम।

तुझे चाहना न थी, भूल मेरी, मेरे हमदम,
तुझे चाहकर भुला न पाया, ये खता मेरी।
तुझे चाहकर भुला न पाया, ये सज़ा मेरी।

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