प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, May 26, 2009

आँखें थकती नहीं, राह थक जाती हैं...


आँखें थकती नहीं, राह थक जाती हैं...

तेरी पत्थराई नज़रों की
चुभन से घबराकर
चहलकदमी करती हैं,
तो कभी - सरपट
दौड़कर लौट आती हैं,
तेरी नज़रों की चुभन के बीच...

मुझको मालूम हैं वो राह
कभी चिलाकर कभी गुर्राकर,
या यूँ ही फुसफुसाकर
सन्नाटों की ओट में,
तेरी खामोशी से
दूर निकल जाना चाहती हैं
पर न जाने क्यों -
किसी हारे हुए सिपाही सी लौट आती हैं
तेरी नज़रों की चुभन के बीच...



बिखरे धुंधले अंधेरों और
आखिरी साँस तक जूझते चिरागों के बीच,
आती जाती रोशनी में,
फैलते सिमटते सायों को खीच
एक गुमशुदा अक्स की तलाश में
किसी मोड़ पर पा लेने की आस से
दौड़ भागकर, कुछ पल हांफ कर -
एक नाकाम टीस पालकर,
थक हारकर फ़िर लौट आती हैं ,
तेरी नज़रों की चुभन के बीच...



तेरी बर्फीली पत्थराई खामोश -
बेनूर आंखों की कहानी,
कितने जाने-अनजाने चेहरों और
देखें भूले राहगीरों की जुबानी,
सुनता आया था मैं, माँ !
पर आज मैं समझा माँ!
उस अंतहीन इंतज़ार का मर्म,
वात्सल्य और ममता का धर्म,
जब ख़ुद छोड़कर आया हूँ,
हॉस्टल के खाली कमरे में,
बच्चों को मैं माँ,
'कुछ' बन जाने को -
इस चाही अनचाही दौड़ में,
एक कदम सबसे आगे बढ़ जाने को ....
अब सूने घर की खाली चौखट से ,
इस आती-जाती राह को,
देखता हूँ और सोचता हूँ -
आँखें थकती नहीं, राह थक जाती हैं...

Tuesday, May 19, 2009

तेरे काँधे पर सर रखकर रोने का मन करता हैं


जब प्रिय! तुम मिलते हो तो अच्छा लगता हैं,
तेरे काँधे पर सर रखकर रोने का मन करता हैं।
पिछले सावन की बरसातें हम जिनसे बच कर भागे थे
उनकी कोरी बूंदों को गालों पर रखने का मन करता हैं।
तेरे काँधे पर सर रखकर रोने का मन करता हैं।

जिन
खाली काली लम्बी रातों में घंटों ख़ुद से बतियातें थे ,
उनके आगोश में लिपटकर तेरी राहें तकने का मन करता हैं।
तेरे काँधे पर सर रखकर रोने का मन करता हैं।

कितने ख्याबों की तामीर रहे तुम औ' कितनों में तुम आते थे,
उस एक तमन्ना से घबरा कर अब जागते रहने का मन करता हैं।
तेरे काँधे पर सर रखकर रोने का मन करता हैं।

बीते सारे लम्हे, जिन पर फुर्सत में तुने मेरे नाम लिखे थे,
यूँ ही उन सब को मुठ्ठी में थामे रखने को मन करता हैं।
तेरे काँधे पर सर रखकर रोने का मन करता हैं।

बहुत भुलाया किस्सा यह, बहुत छिपाया रिश्ता यह,
अब दो पल तुझको सबसे अपना कहने का मन करता हैं।
तेरे काँधे पर सर रखकर रोने का मन करता हैं।

Tuesday, May 12, 2009

एक कहानी अनकही

आज फ़िर एक बीते लम्हे ने
पुकारा मुझे, तेरा नाम लेकर।
टटोला गया फ़िर से वो रिश्ता,
जो रह गया था गुमनाम होकर
चुपचाप निकल आई थी आगे
यह बदनाम ज़िन्दगी मेरी
छोड़कर उजियारे दिन तेरे
लेकर अपनी रातें घनेरी
स्याह रात की इस चादर में,
ना थी कभी कोई उम्मीद मुझे।
सहलायेगा इस कदर -
मेरा बेचैन साया उठकर मुझे।
एक हसरत जो मैं समझा था कि
दफन आया हूँ तेरे दर पर कहीं।
रूह से लिपटकर साथ चली आयी हैं,
अब सुनाती हैं रोज एक कहानी अनकही।

Tuesday, May 5, 2009

आओ एक कविता का सृजन करें


जीवन की विषमताओ ने खींची
हांथों में जो आडी-तिरछी रेखाएँ हैं,
उनमे, आओ, कुछ उमंग के रंग भरें,
आओ, एक कविता का सृजन करें।

सूनी-सूनी आँखों में छुपकर बैठा हैं,
एक उदास बड़ा, बूढा धूमल अंधड़,
उसकी तृप्ति को, आओ, सावन की एक बूँद बने,
आओ, एक कविता का सृजन करें

पत्थरीले प्रगतिपथ पर पड़ा यहाँ तिमिर सघन
हताशा का दामन थामे थककर खड़े वहां कदम कई
उनके हारे बिखरे पग में, आओ, अन्तिम दीपशिखा से जलें
आओ, एक कविता का सृजन करें

आशाओं से च्युत हो गिरते हो जहाँ मन विकल,
लक्ष्य विहीन होकर मार्ग निरखते हों नयन विह्वल
उनके आहात तन को सहलाने को, आओ, मृदुल स्पर्श बने
आओ, एक कविता का सृजन करें

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