बड़े छोटे से लगे दर्द अपने
जब चंद पन्नो पर
सिमट आये
कविता बनकर....
तेरी लटों में उलझे
वो तन्हा से ख्यालात,
तेरे बोसों से महके,
कुछ गुमनाम दिन-रात
कुछ कहे-अनकहे से
मेरे दर्द और जज्बात
वो सालों तक सताती रही
तेरी रुखसत की एक बात
वो मेरी उम्रदराज आरजू,
एक कशमकश, इंतजार
सब कुछ !!
बस चंद पन्नों पर
सिमट आया था
फिर एक नज़र में,
अपनी कविता लगने लगी..
ज़िन्दगी से बड़ी
आखिर कुछ अल्फाजों में सही
किसी शख्स की थी उम्र पड़ी
कुछ आशाएं, कुछ निराशाएं
दिल की बोली कुछ नैन-भाषाएँ
कुछ पाने की चाह,
कुछ खोने की आह
अल्फाजों औ' सफों के दायरों से अलग
भावों औ' ज़ज्बातों से ऊपर
तेरे-मेरी कहानी के बंधन से अलग
इक जुस्तजू, इक धरोहर की
खुशबू की तरह रोशन
साँस लेती, जीती मरती इक कहानी
जो पनप रही थी
उन चंद पन्नों पर....
पर दोनों ही हालातों में ,
शिकवा तो वही था, जानम!
इस बेनाम साझी सी कहानी की
हर लाइनों की तहों में,
जबकि एहसास सिर्फ तुम्हारा था
लेकिन मेरी हाथ की रेखाओं की तरह
इस नज्म में भी नदारत,
नाम तुम्हारा था...
ओह्……………।जज़्बातों को बहुत ही सुन्दरता से सँवारा है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteलेकिन मेरी हाथ की रेखाओं की तरह
ReplyDeleteइस नज्म में भी नदारत,
नाम तुम्हारा था...
Kitni sahajta se itnaa sundar likh jate hain aap!
पर दिल से पन्नों तक की यात्रा ही तो दर्द में डुबो जाती है।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से लिखे हैं जज़्बात
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लगी आपकी कविता.
ReplyDeleteखूबसूरत कविता,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम...