जीवन की विषमताओ ने खींची
हांथों में जो आडी-तिरछी रेखाएँ हैं,
उनमे, आओ, कुछ उमंग के रंग भरें,
आओ, एक कविता का सृजन करें।
सूनी-सूनी आँखों में छुपकर बैठा हैं,
एक उदास बड़ा, बूढा धूमल अंधड़,
उसकी तृप्ति को, आओ, सावन की एक बूँद बने,
आओ, एक कविता का सृजन करें
हांथों में जो आडी-तिरछी रेखाएँ हैं,
उनमे, आओ, कुछ उमंग के रंग भरें,
आओ, एक कविता का सृजन करें।
सूनी-सूनी आँखों में छुपकर बैठा हैं,
एक उदास बड़ा, बूढा धूमल अंधड़,
उसकी तृप्ति को, आओ, सावन की एक बूँद बने,
आओ, एक कविता का सृजन करें
पत्थरीले प्रगतिपथ पर पड़ा यहाँ तिमिर सघन
हताशा का दामन थामे थककर खड़े वहां कदम कई
उनके हारे बिखरे पग में, आओ, अन्तिम दीपशिखा से जलें
आओ, एक कविता का सृजन करें
आशाओं से च्युत हो गिरते हो जहाँ मन विकल,
लक्ष्य विहीन होकर मार्ग निरखते हों नयन विह्वल
उनके आहात तन को सहलाने को, आओ, मृदुल स्पर्श बने
आओ, एक कविता का सृजन करें
बहुत अच्छे।
ReplyDeleteप्रशंसनीय काव्य और भाव
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें