प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Wednesday, April 29, 2009

मेरा ख्याल तो आया


देख तेरी बेपरवाह दिल्लगी ने,
मुझको किस कदर तमाशा बनाया।
खैर अच्छा हुआ क्योंकि -
तमाशा देखते हैं ज़माने वाले
इसी बहाने, उन्हें मेरा ख्याल तो आया।

किसी हाशिये पर अनजान ही
कट जाती जिंदगी तन्हा मेरी,
चलो, अब सबकी जुबान पर
तेरे नाम के साथ मेरा नाम तो आया।
इसी बहाने, उन्हें मेरा ख्याल तो आया।

दो तंज ही सही, यह रंग ही सही
अब मुझसे मुखतिब हैं ज़मानेवाले
आज जिंदा हूँ पर कल मिलही जायेंगे
मेरे नाम पर गज़ले गाने वाले।
तेरी बेरुखी ने सच, एक फ़साना तो बनाया
इसी बहाने, उन्हें मेरा ख्याल तो आया।

Wednesday, April 22, 2009

तुझे चाहकर भुला न पाया, ये खता मेरी



तुझे चाहना, थी भूल मेरी, मेरे हमदम,
तुझे चाहकर भुला न पाया, ये खता मेरी।

अबतक तलाशता हूँ गुमनाम भीड़ में,
तेरा चेहरा इस उम्मीद के साथ।
मिल ही जाए शायद तू मुझे -
किसी मोड़ पर किसी रकीब के साथ।

गर तू मिलकर भी न देखे मेरी ओर,
कोई अफ़सोस न होगा मुझे।
कोई सबब तो मेरे इश्क का ही होगा
जो अब तक रोकता होगा तुझे।


जब फासले हमारे दिलों में हो तो,
जिस्म की दूरियों का क्या गम?
खेल-ऐ-आरजू में कत्ल-ऐ-दिल हकीकत,
दोस्त, कभी हम
तो कभी तुम।

तुझे चाहना न थी, भूल मेरी, मेरे हमदम,
तुझे चाहकर भुला न पाया, ये खता मेरी।
तुझे चाहकर भुला न पाया, ये सज़ा मेरी।

Monday, April 6, 2009

निःशब्द प्रेम प्रतिज्ञा





सीले सिरहाने पर रख छोड़ा हैं ,
एक तेरा स्वप्न अधूरा गीला सा
तुम हो जिसमे मैं हूँ और
वो वर्षों का एकाकीपन हैं
तेरी लाज के आँचल पर,
अब तक ठिठका मेरा मन हैं।



सिमटे सकुचे तुम बैठे थे जैसे ,
उस पहली अपनी मुलाकात में ।
अब भी वैसे ही मिलते हो मुझको,
हर भीगी सीली श्यामल रात में ।


अपनी मृग-चंचल आँखों में
एक मदहोश शरारत से -
निःशब्द ही कह जाते हो ,
चिर-पुरातन अपनी प्रेम-प्रतिज्ञा ,


जिसके बंधन में ही ,
मेरी मुक्ति का सार छिपा हैं।
जिसकी परिधि में ही
मेरा सारा संसार बसा हैं।


अपनी आहो से छूता हूँ ,
हर दिन तेरी कोमल श्वासों को ।
अपनी तृष्णा की तृप्ति को
पीता हूँ तेरी प्यास के प्यालों को ।


स्वप्न रहे थे तुम,
स्वपनों में ही पाता हूँ ।
अपनी निःशब्द प्रेम प्रतिज्ञा को
ऐसे ही हर शाम निभाता हूँ।
Blog Widget by LinkWithin