प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, August 25, 2009

एक निर्वस्त्र दर्द


एक जागती रात के सिरहाने बैठकर,
आकाश की काली आँखों में झांककर,
मैंने अपना एक निर्वस्त्र दर्द उठाया
झूठे सपनो के तार-तार से कपड़े पहनाये
जो बचा, उसे दुनियादारी के -
फटेहाल पैबन्दों से छिपाया
न चेहरा देखा, न रूह नापी
सिर्फ़ एक एहसास पर कि
एक दिन मेरे दायरों से निकल कर
कहीं एक ग़ज़ल की खुली साँस लेगा ,
उसे दफ़न कर दिया ,
डायरी के मटमैले पन्नो पर ...

Tuesday, August 18, 2009

निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस...

सारे पाठकों को राष्ट्र-स्वतंत्रता के ६२ वर्ष मुबारक!!


भर हुंकार उचक कर व्योम तक,
निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस॥

बहुत अर्पित किए हृदय-सुमन
तुमने मदन मंदिरों के पट पर।
आज राष्ट्र-देवी मांगतीं हैं तुझसे,
चिता-भस्म निमिष श्वास भर ॥

अलकों की ओंट में व्यर्थ गंवाई,
दिग्भ्रमित तुमने साँझ कई।
रुधिर-श्रृंगार से करो सज्जित माँ को,
बता दो सपूतों से वो बाँझ नही॥

तिमिर वेदना होती सर्वत्र जब
स्वार्थ-कामना से हर घट लिप्त हो।
मातृ-भवन हो आलोकित तब
बलिदानी पूत हृदय प्रज्वलित हो ॥

मातृ-अस्मिता पर घात लगाये,
बैठे हैं रिपु अदृश्य असंख्य सर्वत्र ।
युगों से धमनियों में फड़क रहा जो
उन्मुक्त करो वो विहंगम रक्त ॥

हो घोष ऐसा छिटक जाए दिशाएं कुछ,
कम्पित को शत्रु-ह्रदय देखकर रूप रौद्र ।
हविस हो अहम् सबके राष्ट्र-यज्ञ में ,
निखर आए संघर्ष-धनी भारत गोत्र ॥

कल्पना में भी जो उठे मातृ-आघात को ,
तोड़ दो निर्लज्य, धृष्ट अक्षम्य उद्दंड हस्त ।
विध्वंस हो बैरस्त भावग्रस्त जीव समस्त ,
खुले हो हर प्रहार को कवच बन हमारे उन्मुक्त वक्ष ॥

हमारा युद्ध ही न एकमात्र विकल्प हो ,
शान्तिप्रियता न हमारी हीनता कल्प हो ।
बतादो विश्व को हम नहीं बिसराया हुआ गीत हैं,
शांतिदूतों की पुरातन जीत की ही रीति हैं॥

बता दो भारतपूतों को असंभव कुछ नहीं ,
चाँद क्या सूरज की तपिस भी क्षम्य नहीं।
भर हुंकार उचक कर व्योम तक,
निचोड़ लो मुष्ठियों में सोमरस॥

Tuesday, August 11, 2009

तेरे बिना एक और दिन, एक और लम्हा

तेरे बिना एक और दिन, एक और लम्हा,
यादों के सिवा कुछ और नहीं, बस तन्हा-तन्हा।

यादों के दो हर्फ़ लिए, आयत सा मैं पढता जाता,
तेरे ही नाम के नुक्ते में,जीवन का हर अर्श मैं पाता

हर पल महसूस किया हैं तुझको अपनी हर बीती धड़कन में,
तेरी यादों के आँचल में ढांपा हैं ख़ुद को जीवन की हर सिहरन में,

तू मुझसे कुछ दूर सही, पर एक रिश्ता तो अब भी मुझसे बांधे हैं तुझको
रोते हम भी सबसे छुप-छुपकर पर तेरी यादों का जज्बा थामे हैं मुझको,

और कहूं क्या तुझसे मैं, अपने टूटे तन्हा दिल का हाल प्रिय,
इन यादों में तुम हो सो जन्नत हैं बाकी सब तो दोज़ख हाल प्रिय,

तेरे जाने का कोई गम मुझको नही -तेरी यादें जो अब आती हैं,
यह तो बस फ़िर मिलने की चाहत हैं जो अब तक तडपाती हैं।

मेरे होने न होने का इतना ही सबब होगा शायद मेरे हमदम !
तू मेरी यादों में हैं अब, मैं तेरी यादों में होऊंगा तब हरदम !

Tuesday, August 4, 2009

मेरे टूटे रिश्ते का हिस्सा होगा शायद!!




आँखों के करीने में कुछ तो चुभता हैं
मेरे टूटे रिश्ते का हिस्सा होगा शायद!!


एक उम्र हुई, जब वक्त के धुंधले में,
अनजाने में दुनियादारी की ठोकर से,
तेरे मेरे ख्याबों पर पाँव पड़ा था मेरा।
मेरे मजबूर हाथों से फिसला था
एक संग चलता संग-सा रिश्ता
पर बिखरा बेआवाज़ वो कांच-सा रिश्ता !!


और मैं बेखबर न तब समझ पाया था -
कि बंद मुठ्ठियों से मैं क्या खो आया था.
कितनी बार मैंने रिश्तों के बही-खाते,
ज़ज्बातों और समझोतों में बाँटे-छांटे।
पर वो बिखरा रिश्ता कहीं न सिमट पाया,
हर बार एक तेरा ही रिश्ता घट आया ।


अब वो हाथों से छूटा बिखरा-बिखरा रिश्ता
अक्सर इन तन्हा आँखों में मिल जाता हैं -
हुई मुद्दत पर अब भी चुभ जाता हैं -
आज भी ऐसा ही कोई किस्सा होगा शायद
आँखों के करीने में कुछ तो चुभता हैं
मेरे टूटे रिश्ते का हिस्सा होगा शायद!!
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