ज़िन्दगी दो अल्फाजों में सिमट आती है
आह तेरे नाम से जब भी निकल आती है
दौर-ए-उल्फत में बहके होंगे कदम हमारे
अब तो तेरी हर बात संजीदा नज़र आती है
कैसे रखते हैं लोग दिल में हसरतें हज़ार
इक आरज़ू में तेरी ये उम्र गुजर आती हैं
न दिखा ज़ख़्म औ' जज़्बात ज़माने-भर को
हों करम उसके तो ये रहमत नसीब आती है
हैं यकीन दास्ताँ ठुकराएगा वो दिल तेरा
देंखे उनके जानिब ये कब खबर आती है