प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, November 16, 2010

ज़िन्दगी दो अल्फाजों में सिमट आती है


ज़िन्दगी दो अल्फाजों में सिमट आती है
आह तेरे नाम से  जब भी निकल आती है

दौर-ए-उल्फत में बहके होंगे कदम हमारे
अब तो तेरी हर बात संजीदा नज़र आती है

कैसे रखते हैं लोग दिल में हसरतें हज़ार
इक आरज़ू में तेरी ये उम्र गुजर  आती हैं

न दिखा ज़ख़्म औ' जज़्बात ज़माने-भर को
हों करम उसके तो ये रहमत नसीब आती है

हैं यकीन दास्ताँ ठुकराएगा वो दिल तेरा
देंखे उनके जानिब ये कब खबर आती है

Friday, November 5, 2010

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ



दीपावली के तमस-भंजक दीपों की ज्योत्सना
हर जीवन को हर्षोल्लास की आभा से जगमगा दे
मिटे सबके दुःख दर्द और दारिद्र का अँधियारा  
रिपु मन-आँगन में भी नित्य नेह के दीप जला दे

हर चौखट पर जले प्रीत के दीप
हर जन हो उल्लासित, हर मन जगमगाए
कहे सुधीर, हर पाठक को
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

Tuesday, November 2, 2010

ज़माना है



मेरे हालात पर क्यों हँसता ज़माना है
मेरा कातिल मेरा मुनसिब ज़माना हैं

हर गम-औ-ख़ुशी को बेबस अपनाना है
हाय! क्या बेदर्द यह दस्तूर-ए-ज़माना है

तन्हा सबको अपनी सलीबें खुद ही ढोना है
यूँ तो कहने को सबका हमदर्द ज़माना है

करके तौबा तेरे सजदे में सिर झुकाना है
इश्क-ए-इबादत को जुर्म कहता ज़माना हैं

तेरे मेरे नाम पर निकला इक फ़साना है
न छिपा अब जख्म, कुरेदेगा ज़माना है

तन्हाईयों में भी 'दास्ताँ' सलीके से रोना हैं
दिलजलों की आह को भी परखता ज़माना हैं
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