प्यारे पथिक

जीवन ने वक्त के साहिल पर कुछ निशान छोडे हैं, यह एक प्रयास हैं उन्हें संजोने का। मुमकिन हैं लम्हे दो लम्हे में सब कुछ धूमिल हो जाए...सागर रुपी काल की लहरे हर हस्ती को मिटा दे। उम्मीद हैं कि तब भी नज़र आयेंगे ये संजोये हुए - जीवन के पदचिन्ह

Tuesday, January 5, 2010

कतरा कतरा मैं बह जाऊंगा



मकाँ इक पुराना हूँ मैं, तेरी गर्म सांसों से ढह जाऊंगा
न रो मेरे काँधों से लगकर, कतरा कतरा मैं बह जाऊंगा

आशिक़ बनकर जिया हूँ मैं, आशिक़ बनकर मर जाऊँगा,
छिपाया ताउम्र नाम जो आखिरी हिचकीं में कह जाऊंगा

रात-रात जागा हूँ मैं, चुभते हुए ख्याबों की मानिंद
सुबह एक प्यास  की तरह,  तेरी आँखों में रह जाऊंगा

आता ही नहीं हूँ मैं, तेरी दर पर दिल लगाने के डर से,
तेरे आंसूओं का इल्म मुझे, अपना दर्द तो सह जाऊंगा

इक फकीरी ख्याल हूँ मैं  'दास्ताँ' अजनबी नहीं कोई,
तेरे शहर में किसी भी  गुमनाम गली में लह जाऊँगा

8 comments:

  1. इक फकीरी ख्याल हूँ मैं 'दास्ताँ' अजनबी नहीं कोई,
    तेरे शहर में किसी भी गुमनाम गली में लह जाऊँगा

    बहुत सुंदर पंक्तियाँ.....

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  2. ’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

    -त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

    नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

    कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

    -सादर,
    समीर लाल ’समीर’

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  3. सुधीर सब से पहले तो मैं क्षमा माँगती हूँ कि अपनी 31 दिस. की पोस्ट जल्दी जल्दी मे लिखने के कारण बहुत से मेरे अपनो के नाम उसमे लिखने से रह गये। बच्चे आये हुये थे बहुत व्यस्त रही मुझे पता है कि जो मेरे अपने हैं वो मेरी गलती पर नाराज़ नहीं होंगे। मैने अपनी टिप्पणी मे माफी माँग ली है। कई दिन नेट से भी दूर रही इस लिये ब्लाग पर भी नहीं आ पायी। तुम्हारी इस गज़ल के किस किस शेर की तरीफ करूँ कई बार पढा लाजवाब लिखते हो। मैने कापी कर के रख ली है फिर पढूँगी। नये साल की पूरे परिवार को बहुत बहुत शुभकामनायें आशीर्वाद्

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  4. मैं निर्मला दी की इन बातों से सहमत हूं कि आपकी इस ग़ज़ल के किस किस शेर की तरीफ करूँ। लाजवाब लिखा है आपने।

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  5. रात-रात जागा हूँ मैं, चुभते हुए ख्याबों की मानिंद
    सुबह एक प्यास की तरह, तेरी आँखों में रह जाऊंगा

    Achee gazal hai .. lajawaab sher hai ...

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  6. इक फकीरी ख्याल हूँ मैं 'दास्ताँ' अजनबी नहीं कोई,
    तेरे शहर में किसी भी गुमनाम गली में लह जाऊँगा

    बढ़िया ग़ज़ल है!

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